Tuesday, December 19, 2017
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हास्य-व्यंग्य
किसी भी सरकारी दफ्तर में काम कराना हो तो सबसे पहले चाहिए एफिडेविट। इसे शुद्ध हिंदी में शपथपत्र तो उर्दू जुबान में हलफनामा कहते हैं। बहरहाल इससे जुड़े तमाम पहलू भी कम दिलचस्प नहीं हैं और इनमें से तमाम हमारी रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े हैं। मसलन एफिडेविट-शपथपत्र, लाइसेंस खो गया है नया बनवाना है तो शपथ दीजिए, एफिडेविट दीजिए। विकराल सा दफ्तर, खुद को अफसर समझते दलाल और दलाली खाते अफसर, हाथ बांधकर सिर्फ आम आदमी ही नहीं, खास आदमी भी खड़ा हो जाता है।
सिर्फ सरकारी आदमी को ही पता होता है कि इस विकराल किले की चाबियां हैं कहां। शपथपत्र दो-मैं अलां पुत्र फलां का निवासी......
अकड़फूं अफसर सीधे बात करने को तैयार नहीं, दलाल को इतने या उतने हजार चाहिए। जेब में उतने हजार न हो, तो इंसानी तो क्या कुत्ते जैसा सुलूक भी न मिले। वहां जाइए। वहां जाकर पता लगता है कि- नहीं जी यहां नहीं आना था, आप को तो वहां जाना था। जी वहां जाकर पता लगता है कि भाई साहब आप तो पढ़े लिखे होकर कैसी बातें कर रहे हैं? वहां, वहां, वहां जाना था। वहां, वहां, वहां जाकर पता लगता है कि वहां वाले तो आए ही नहीं हैं। कब आएंगे, जी पता नहीं। कब आएंगे, यह आपको बताकर जाएंगे क्या? क्या अफसर आपको बताने के लिए बने हैं? जी तो हम कब आएं अपने काम के लिए? जब मन करे तब आइए, सरकार का दफ्तर है। कोई मनाही थोड़े ही आने की। चाहे जब आइए, दफ्तर के बाहर समोसे की दुकानों से समोसे खाकर चले जाइए। क्या कहा काम के लिए आना है, समोसे खाने नहीं। तो रोज आकर पूछ लीजिए कि वह कब आएंगे जिनसे आपका काम पड़ता है।
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हास्य-व्यंग्य-------हलफनामा
हलफनामा
किसी भी सरकारी दफ्तर में काम कराना हो तो सबसे पहले चाहिए एफिडेविट। इसे शुद्ध हिंदी में शपथपत्र तो उर्दू जुबान में हलफनामा कहते हैं। बहरहाल इससे जुड़े तमाम पहलू भी कम दिलचस्प नहीं हैं और इनमें से तमाम हमारी रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े हैं। मसलन एफिडेविट-शपथपत्र, लाइसेंस खो गया है नया बनवाना है तो शपथ दीजिए, एफिडेविट दीजिए। विकराल सा दफ्तर, खुद को अफसर समझते दलाल और दलाली खाते अफसर, हाथ बांधकर सिर्फ आम आदमी ही नहीं, खास आदमी भी खड़ा हो जाता है।
P-Point Computorium |
सिर्फ सरकारी आदमी को ही पता होता है कि इस विकराल किले की चाबियां हैं कहां। शपथपत्र दो-मैं अलां पुत्र फलां का निवासी......
सरकारी अफसरों की अकड़फूं देखकर सरकारी दफ्तर में तो अपने इंसान होने तक पर शक होने लगता है, बाकी की शपथ क्या लें। उस दिन उस सरकारी दफ्तर में वह क्लर्क इस अंदाज में मुझसे बात कर रहा था कि कुछ देर के लिए तो मुङो अपने इंसान होने पर शक होने लगा। बाद में मुङो पता लगा कि वह क्लर्क हर बंदे को मुर्गी या बकरा समझता है कि जिसे आखिर में कटना ही है।
P-Point Computorium |
अकड़फूं अफसर सीधे बात करने को तैयार नहीं, दलाल को इतने या उतने हजार चाहिए। जेब में उतने हजार न हो, तो इंसानी तो क्या कुत्ते जैसा सुलूक भी न मिले। वहां जाइए। वहां जाकर पता लगता है कि- नहीं जी यहां नहीं आना था, आप को तो वहां जाना था। जी वहां जाकर पता लगता है कि भाई साहब आप तो पढ़े लिखे होकर कैसी बातें कर रहे हैं? वहां, वहां, वहां जाना था। वहां, वहां, वहां जाकर पता लगता है कि वहां वाले तो आए ही नहीं हैं। कब आएंगे, जी पता नहीं। कब आएंगे, यह आपको बताकर जाएंगे क्या? क्या अफसर आपको बताने के लिए बने हैं? जी तो हम कब आएं अपने काम के लिए? जब मन करे तब आइए, सरकार का दफ्तर है। कोई मनाही थोड़े ही आने की। चाहे जब आइए, दफ्तर के बाहर समोसे की दुकानों से समोसे खाकर चले जाइए। क्या कहा काम के लिए आना है, समोसे खाने नहीं। तो रोज आकर पूछ लीजिए कि वह कब आएंगे जिनसे आपका काम पड़ता है।
सरकारी दफ्तर में मान लीजिए ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी का दफ्तर, लाइसेंस वगैरह यहीं से मिलने हैं। एक नौजवान बोला-जी मुङो सिर्फ बाइक चलाने का लाइसेंस चाहिए। दलाल बोला-देख भाई इत्ते दे दे, कार चलाने का भी उसी में जुड़ जाएगा, पर मेरे पास कार है कहां, उसका लाइसेंस नहीं चाहिए। मेरे पास भी ट्रक कहां है, पर मेरे पास ट्रक चलाने का लाइसेंस है-दलाल ने स्पष्टीकरण दिया।
ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी के दफ्तर जाकर मेरा यकीन लाइसेंसिंग सिस्टम से ही उठ गया है। अब जब कोई हवाई दुर्घटना होती है, मुङो शक होने लगता है कि दुर्घटनाग्रस्त हवाई जहाज का लाइसेंस भी उसी ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी के दफ्तर से गया होगा जो बाइक के साथ कार चलाने का लाइसेंस यूं ही नहीं, कुछेक हजार में दे देती है। अथॉरिटी से बना पायलट भी क्या करे, कुछेक हजार में पायलेट का लाइसेंस ले आएगा तो फिर जहाज तो उड़ाना पड़ेगा।
एक हवाई यात्र के दौरान मैंने एक पायलेट से यूं ही पूछ लिया कि भाई आपके पास हवाई जहाज चलाने का पक्का लाइसेंस है न। पायलट ने उलटे पूछ लिया-यह सवाल आप देश चलाने वालों से तो कभी नहीं पूछते कि क्या उनके पास देश चलाने का पक्का लाइसेंस, सच्ची काबिलियत है। सारी अफसरी हम पर ही दिखा रहे हैं आप। बात में बहुत दम है। हरेक से तो हम नहीं पूछते कि तेरे पास लाइसेंस है क्या? पायलेट के हादसे के बाद मैंने लाइसेंस का सवाल, काबिलियत का सवाल किसी से भी पूछना बंद कर दिया। अभी एक डॉक्टर के यहां जाना हुआ, शक हुआ पर पूछने की हिम्मत नहीं हुई, वरना वही जवाब सुनना होता-देश चलाने वालों से तो कभी न पूछते, क्लीनिक चलाने वालों से पूछ रहे हैं।
ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी के दफ्तर जाकर मेरा यकीन लाइसेंसिंग सिस्टम से ही उठ गया है। अब जब कोई हवाई दुर्घटना होती है, मुङो शक होने लगता है कि दुर्घटनाग्रस्त हवाई जहाज का लाइसेंस भी उसी ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी के दफ्तर से गया होगा जो बाइक के साथ कार चलाने का लाइसेंस यूं ही नहीं, कुछेक हजार में दे देती है। अथॉरिटी से बना पायलट भी क्या करे, कुछेक हजार में पायलेट का लाइसेंस ले आएगा तो फिर जहाज तो उड़ाना पड़ेगा।
एक हवाई यात्र के दौरान मैंने एक पायलेट से यूं ही पूछ लिया कि भाई आपके पास हवाई जहाज चलाने का पक्का लाइसेंस है न। पायलट ने उलटे पूछ लिया-यह सवाल आप देश चलाने वालों से तो कभी नहीं पूछते कि क्या उनके पास देश चलाने का पक्का लाइसेंस, सच्ची काबिलियत है। सारी अफसरी हम पर ही दिखा रहे हैं आप। बात में बहुत दम है। हरेक से तो हम नहीं पूछते कि तेरे पास लाइसेंस है क्या? पायलेट के हादसे के बाद मैंने लाइसेंस का सवाल, काबिलियत का सवाल किसी से भी पूछना बंद कर दिया। अभी एक डॉक्टर के यहां जाना हुआ, शक हुआ पर पूछने की हिम्मत नहीं हुई, वरना वही जवाब सुनना होता-देश चलाने वालों से तो कभी न पूछते, क्लीनिक चलाने वालों से पूछ रहे हैं।
दिल्ली के करीब एक निजी अस्पताल ने सोलह लाख रुपये का बिल दिखाया एक मौत का। सोलह लाख में मौत, बड़े निजी अस्पताल की काबिलियत है। बिना कोई टीका-इंजेक्शन लगाए हुए मारना सरकारी अस्पतालों की काबिलियत है। हाल में एक सरकारी अस्पताल में नकली दवाओं की शिकायत आई तो इसकी जांच में पता चला कि सरकारी अस्पतालों की खरीदी गई दवाएं कभी भी अस्पताल पहुंचती ही नहीं-क्या असली क्या नकली। सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरी लापरवाही से ही बंदा मर सकता है, दवाओं पर इसका इल्जाम न लगाया जाए।
खैर, अभी एक सरकारी दफ्तर में एफिडेविट दाखिल करना पड़ा जिसमें लिखना था-मैं सच्चरित्र और सच्चा नागरिक हूं। मेरी मां ही मुङो कभी सच्चा न मानती, मां तो मान भी ले, बीवी न मानती और मैं जमाने भर के सामने घोषणा करूं कि मैं सच्चा हूं। मैंने आपत्ति की-भाई दुश्चरित्र और झूठे को भी जीने दो, यह लाइन हटा दो।
बाबू ने बहुत ही फिलासफाना अंदाज में कहा-जीवन ही यूं पूरा झूठ चला जा रहा है जैसे कोई सरकारी एफिडेविट। मैंने कहा-भाई आपने तो कविता कर दी। क्लर्क ने बताया कि वह मूल रूप से कवि ही है, बतौर रिश्वत मुङो उसके दो काव्य संग्रह पूरे सुनने पड़ेंगे।
खैर, अभी एक सरकारी दफ्तर में एफिडेविट दाखिल करना पड़ा जिसमें लिखना था-मैं सच्चरित्र और सच्चा नागरिक हूं। मेरी मां ही मुङो कभी सच्चा न मानती, मां तो मान भी ले, बीवी न मानती और मैं जमाने भर के सामने घोषणा करूं कि मैं सच्चा हूं। मैंने आपत्ति की-भाई दुश्चरित्र और झूठे को भी जीने दो, यह लाइन हटा दो।
बाबू ने बहुत ही फिलासफाना अंदाज में कहा-जीवन ही यूं पूरा झूठ चला जा रहा है जैसे कोई सरकारी एफिडेविट। मैंने कहा-भाई आपने तो कविता कर दी। क्लर्क ने बताया कि वह मूल रूप से कवि ही है, बतौर रिश्वत मुङो उसके दो काव्य संग्रह पूरे सुनने पड़ेंगे।
आलोक पुराणिक
Source:- Dainik Jagran
Monday, December 11, 2017
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उत्तर प्रदेश के गरीबों, किसानों और असहाय वर्ग के लोगों को मुख्यमंत्री किसान एवं सर्वहित बीमा योजना के तहत आच्छादित किया गया है। इसका शासनादेश शुक्रवार को जारी हो चुका है। इसके लागू होने पर अब इन लोगों को ढाई लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज मिलेगा। कृत्रिम अंग की जरूरत पड़ने पर एक लाख रुपये तक का इंप्लांट भी मुफ्त होगा। इस सुविधा को व्यवहार में लाने और उसकी मॉनीटरिंग की जिम्मेदारी संस्थागत वित्त, बीमा एवं बाह्य सहायतित परियोजना महानिदेशालय निभाएगा। चिकित्सा शिक्षा के सभी प्रधानाचार्य, निदेशक और कुलपति इसके नोडल अधिकारी होंगे।
इस बीमा से जुड़े अस्पताल सीजीएचएस की दरों पर 10 दिनों में क्लेम पेश करेंगे, जबकि बीमा कंपनी से 45 दिन के भीतर क्लेम राशि उन्हें देगी। इसके लिए किसान का नाम रेवन्यू विभाग के रिकार्ड या खतौनी में खातेदार या सहखातेदार के तौर पर लिखा होना जरूरी है। इसके साथ ही उम्र 18 से 70 वर्ष के बीच और सालाना पारिवारिक आय 75 हजार रुपये से कम होनी चाहिए। ऐसे परिवारों को राजस्व या ब्लॉक अधिकारी द्वारा जारी सार्टिफिकेट के आधार पर लाभ अनुमन्य होंगे।1प्रदेश सरकार की अन्य कई योजनाओं की तरह यह भी एक महत्वाकांक्षी योजना है। इसके पूरी तरह से लागू हो जाने के बाद गरीब जनता को इलाज के लिए अपनी जमीन, घर और जेवरात बेचने नहीं पड़ेंगे और न महाजन की शरण में जा कर अनापशनाप ब्याज पर कर्ज लेना पड़ेगा। आज के दौर में अस्पतालों में इलाज अपने आप में बहुत बड़ी समस्या है, सरकारी अस्पतालों में भी महंगी दवा बाहर से ही खरीद कर देनी होती है। गरीबों के सामने बड़ी विकट समस्या हो जाती है। कई बार वह देखा देखी में प्राइवेट अस्पतालों का रुख कर जाते हैं और उन्हें बहुत अधिक आर्थिक चोट उठानी पड़ती है। कम आय वर्ग के लोगों के लिए इस तरह की सुविधा देने के प्रयास कई वर्षो से चल रहे हैं लेकिन, कोई आसान प्रक्रिया तैयार नहीं हो पायी है। योगी सरकार से उम्मीद की जाती है कि अब तक की व्यावहारिक कठिनाइयों से सबक लेते हुए प्रदेश की जनता को यह लाभ दिलाएगी। सरकारी मशीनरी भी इसमें राज्य सरकार की मंशा के अनुरूप कार्य करेगी।
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मुफ्त इलाज
सरकार करेगी मुफ्त इलाज
उत्तर प्रदेश के गरीबों, किसानों और असहाय वर्ग के लोगों को मुख्यमंत्री किसान एवं सर्वहित बीमा योजना के तहत आच्छादित किया गया है। इसका शासनादेश शुक्रवार को जारी हो चुका है। इसके लागू होने पर अब इन लोगों को ढाई लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज मिलेगा। कृत्रिम अंग की जरूरत पड़ने पर एक लाख रुपये तक का इंप्लांट भी मुफ्त होगा। इस सुविधा को व्यवहार में लाने और उसकी मॉनीटरिंग की जिम्मेदारी संस्थागत वित्त, बीमा एवं बाह्य सहायतित परियोजना महानिदेशालय निभाएगा। चिकित्सा शिक्षा के सभी प्रधानाचार्य, निदेशक और कुलपति इसके नोडल अधिकारी होंगे।
Muft ilaj- Sarvhit Bima Yojna |
इस बीमा से जुड़े अस्पताल सीजीएचएस की दरों पर 10 दिनों में क्लेम पेश करेंगे, जबकि बीमा कंपनी से 45 दिन के भीतर क्लेम राशि उन्हें देगी। इसके लिए किसान का नाम रेवन्यू विभाग के रिकार्ड या खतौनी में खातेदार या सहखातेदार के तौर पर लिखा होना जरूरी है। इसके साथ ही उम्र 18 से 70 वर्ष के बीच और सालाना पारिवारिक आय 75 हजार रुपये से कम होनी चाहिए। ऐसे परिवारों को राजस्व या ब्लॉक अधिकारी द्वारा जारी सार्टिफिकेट के आधार पर लाभ अनुमन्य होंगे।1प्रदेश सरकार की अन्य कई योजनाओं की तरह यह भी एक महत्वाकांक्षी योजना है। इसके पूरी तरह से लागू हो जाने के बाद गरीब जनता को इलाज के लिए अपनी जमीन, घर और जेवरात बेचने नहीं पड़ेंगे और न महाजन की शरण में जा कर अनापशनाप ब्याज पर कर्ज लेना पड़ेगा। आज के दौर में अस्पतालों में इलाज अपने आप में बहुत बड़ी समस्या है, सरकारी अस्पतालों में भी महंगी दवा बाहर से ही खरीद कर देनी होती है। गरीबों के सामने बड़ी विकट समस्या हो जाती है। कई बार वह देखा देखी में प्राइवेट अस्पतालों का रुख कर जाते हैं और उन्हें बहुत अधिक आर्थिक चोट उठानी पड़ती है। कम आय वर्ग के लोगों के लिए इस तरह की सुविधा देने के प्रयास कई वर्षो से चल रहे हैं लेकिन, कोई आसान प्रक्रिया तैयार नहीं हो पायी है। योगी सरकार से उम्मीद की जाती है कि अब तक की व्यावहारिक कठिनाइयों से सबक लेते हुए प्रदेश की जनता को यह लाभ दिलाएगी। सरकारी मशीनरी भी इसमें राज्य सरकार की मंशा के अनुरूप कार्य करेगी।
Friday, December 1, 2017
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युवाओ के लिए खुशखबरी
प्रदेश के माध्यमिक स्कूलों में होगी 20 हज़ार शिक्षको और चपरासियों की भर्ती
नए साल में माध्यमिक शिक्षा विभाग में नौकरियों की बहार आएगी। राज्य सरकार की शिक्षकों और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को मिलाकर लगभग 20 हजार लोगों को नौकरी देने की तैयारी है। इनमें लगभग 10 हजार अध्यापक होंगे और लगभग इतने ही चपरासी। शिक्षकों की नियुक्तियां सहायता प्राप्त माध्यमिक स्कूलों में होंगी जबकि चपरासियों की भर्तियां सहायता प्राप्त और राजकीय माध्यमिक विद्यालयों में होंगी।
प्रदेश के माध्यमिक स्कूलों में होगी 20 हज़ार शिक्षको और चपरासियों की भर्ती |
यूपी में 4512 सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालय हैं। इनमें 3918 बालक और 594 बालिका विद्यालय हैं। इनमें सहायक अध्यापकों के 72,120 पद स्वीकृत हैं और लगभग 20,765 पद रिक्त हैं। सरकार ने सहायता प्राप्त विद्यालयों में शिक्षकों की कमी पूरी करने के लिए सेवानिवृत्त अध्यापकों और प्रवक्ताओं को संविदा पर रखने का फैसला किया था। अब इन स्कूलों में अंग्रेजी, गणित, हिंदी, भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, जीव विज्ञान, वाणिज्य सहित अन्य विषयों के दस हजार से अधिक रिक्त पदों पर स्थायी नियुक्तियों का प्रस्ताव तैयार किया गया है।
इसे सैद्धांतिक सहमति मिल चुकी है। माध्यमिक शिक्षा निदेशक अवध नरेश शर्मा ने बताया कि माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड में अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति के बाद सहायक अध्यापकों की भर्ती का प्रस्ताव बोर्ड को भेज दिया जाएगा। उधर, सूत्रों का कहना है कि शिक्षकों की नियुक्तियां मौलिक पदों पर और स्थायी रूप से की जाएंगी लेकिन चपरासियों की नियुक्ति चतुर्थ श्रेणी के रिक्त मौलिक पदों पर नहीं की जाएगी।
एवं सहायता प्राप्त विद्यालयों में चतुर्थ श्रेणी के रिक्त पदों पर ये नियुक्तियां आउटसोर्सिंग के जरियेे होंगी। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के खाली पदों पर नियुक्तियां न होने के बारे में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने शिक्षा विभाग से जवाब तलब किया है। साथ ही पूछा है कि ये नियुक्तियां किस तरह और कैसे की जाएंगी। उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद विभाग ने बाहरी एजेंसी के जरिये चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की भर्ती का प्रस्ताव तैयार किया है। प्रदेश के2109 राजकीय हाई स्कूल और इंटर कॉलेज में चपरासी के चार हजार से अधिक पद खाली हैं। वहीं, 4512 सहायता प्राप्त विद्यालयों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के 7589 पद रिक्त हैं। शिक्षा विभाग की तरफ से राजकीय हाई स्कूल और इंटर कॉलेज में 9852 पदों पर सहायक अध्यापकों की भर्ती का प्रस्ताव पहले ही उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग को भेजा जा चुका है।
माना जा रहा है कि सरकार के एक साल का कार्यकाल पूरा होने तक भर्तियां हो जाएंगी। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के पद रिक्त होने से विद्यालयों में साफ-सफाई से लेकर अन्य कार्य प्रभावित हो रहे हैं। न्यायालय के हस्तक्षेप पर विभाग ने विद्यर्थियों की संख्या के आधार पर प्रत्येक स्कूल में एक से चार चपरासियों की भर्ती की तैयारी की है। माध्यमिक शिक्षा निदेशक अवध नरेश शर्मा ने बताया कि चतुर्थ श्रेणी पदों पर नियुक्तियों के लिए एजेंसी तय की जाएगी। जिला विद्यालय निरीक्षकों को उनके जिले में प्रत्येक विद्यालय में चपरासी के स्वीकृत पद के अनुरूप बजट दिया जाएगा। डीआईओएस विद्यालय प्रबंध समिति को चपरासी के मानदेय के लिए बजट जारी करेंगे
इसे सैद्धांतिक सहमति मिल चुकी है। माध्यमिक शिक्षा निदेशक अवध नरेश शर्मा ने बताया कि माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड में अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति के बाद सहायक अध्यापकों की भर्ती का प्रस्ताव बोर्ड को भेज दिया जाएगा। उधर, सूत्रों का कहना है कि शिक्षकों की नियुक्तियां मौलिक पदों पर और स्थायी रूप से की जाएंगी लेकिन चपरासियों की नियुक्ति चतुर्थ श्रेणी के रिक्त मौलिक पदों पर नहीं की जाएगी।
एवं सहायता प्राप्त विद्यालयों में चतुर्थ श्रेणी के रिक्त पदों पर ये नियुक्तियां आउटसोर्सिंग के जरियेे होंगी। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के खाली पदों पर नियुक्तियां न होने के बारे में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने शिक्षा विभाग से जवाब तलब किया है। साथ ही पूछा है कि ये नियुक्तियां किस तरह और कैसे की जाएंगी। उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद विभाग ने बाहरी एजेंसी के जरिये चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की भर्ती का प्रस्ताव तैयार किया है। प्रदेश के2109 राजकीय हाई स्कूल और इंटर कॉलेज में चपरासी के चार हजार से अधिक पद खाली हैं। वहीं, 4512 सहायता प्राप्त विद्यालयों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के 7589 पद रिक्त हैं। शिक्षा विभाग की तरफ से राजकीय हाई स्कूल और इंटर कॉलेज में 9852 पदों पर सहायक अध्यापकों की भर्ती का प्रस्ताव पहले ही उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग को भेजा जा चुका है।
माना जा रहा है कि सरकार के एक साल का कार्यकाल पूरा होने तक भर्तियां हो जाएंगी। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के पद रिक्त होने से विद्यालयों में साफ-सफाई से लेकर अन्य कार्य प्रभावित हो रहे हैं। न्यायालय के हस्तक्षेप पर विभाग ने विद्यर्थियों की संख्या के आधार पर प्रत्येक स्कूल में एक से चार चपरासियों की भर्ती की तैयारी की है। माध्यमिक शिक्षा निदेशक अवध नरेश शर्मा ने बताया कि चतुर्थ श्रेणी पदों पर नियुक्तियों के लिए एजेंसी तय की जाएगी। जिला विद्यालय निरीक्षकों को उनके जिले में प्रत्येक विद्यालय में चपरासी के स्वीकृत पद के अनुरूप बजट दिया जाएगा। डीआईओएस विद्यालय प्रबंध समिति को चपरासी के मानदेय के लिए बजट जारी करेंगे
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