Monday, January 22, 2018
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आओ पढ़ाई करे।
देश में पठन-पाठन के प्रति लगाव रखने और इस दिशा में समुचित कदम उठाये जाने की लगातार आवाज उठाने वाले लोगों का ध्यान कल की दो ताजा खबरों ने जरूर खींचा होगा। हमेशा की तरह एक चिंताजनक खबर यह थी कि आइआइटी जैसे संस्थानों तक को ढूंढ़ने के बावजूद काबिल शिक्षक नहीं मिल पा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ राहत देने वाली खबर यह थी कि उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों में अब पढ़ाई के साथ-साथ पढ़ाना भी जरूरी करने पर विचार किया जा रहा है।
उम्मीद यह भी जताई जा रही है कि आगामी आम बजट में केंद्र सरकार द्वारा इस बारे में विधिवत घोषणा भी की जा सकती है। फिलहाल बीएड जैसे टीचिंग से जुड़े पाठ्यक्रमों में ही छात्रों को पढ़ने के साथ पढ़ाने की अनिवार्यता है। यह योजना लागू हो जाने के बाद स्नातक कोर्सो के छात्रों को हर सप्ताह कम से कम तीन घंटे पढ़ाना होगा। शिक्षण प्रशिक्षण की जरूरत को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों से अपनी सुविधा के अनुसार आसपास के शिक्षण संस्थानों में सेवाएं देने की बार-बार की अपीलों की वजह से ऐसे तमाम लोगों ने स्कूलों में पढ़ाने की सकारात्मक पहल की है। अगर केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रलय की इस प्रस्तावित योजना ने मूर्त रूप ले लिया, तो स्कूलों में अध्यापकों की कमी की काफी हद तक भरपाई की जा सकेगी।1आकर्षण बढ़ाने की जरूरत1हर किसी की जिंदगी को सही दिशा देने में अध्यापक का योगदान सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। सभी को अपने जीवन में कोई न कोई कभी न भुलाये जा सकने वाले टीचर जरूर मिले होंगे। आज हमें देश के भावी कर्णधारों को गढ़ने वाले सबसे काबिल अध्यापकों की सबसे ज्यादा जरूरत है। पर विडंबना यह है कि पिछले एक-दो दशकों से टीचिंग को उपेक्षित पेशा जैसा मान लिया गया है। उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले युवाओं की दिलचस्पी ज्यादा पैसे वाली आकर्षक नौकरियों में है। हालांकि हाल के वर्षो में प्राइमरी से लेकर कॉलेज-विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तक को मिलने वाली सैलरी और सुविधाओं में अच्छा-खासा इजाफा हुआ है, इसके बावजूद टीचिंग के प्रति युवाओं में क्रेज जैसी कोई बात नहीं बन पा रही है। ऐसे में इस सबसे सम्मानित पेशे का प्रचार-प्रसार करने, इसमें और आकर्षण जोड़ने और युवा पीढ़ी को इसके प्रति आकर्षित करने के लिए अभियान चलाने की जरूरत महसूस की जा रही है। जिस तरह एक कुम्हार या मूर्तिकार कच्ची मिट्टी को अपने कुशल हाथों से तराश कर तरह-तरह का मनभावन रूप दे देता है, उसी तरह एक अध्यापक भी बच्चों को संस्कार-ज्ञान-समझदारी की शिक्षा देकर जिम्मेदार नागरिक बनाने में अपना योगदान देता है। 1काबिल फैकल्टी की चुनौती!1दिल्ली, मद्रास, खड़गपुर सहित देश की सभी 23 आइआइटी में फिलहाल औसतन 35 प्रतिशत से अधिक फैकल्टी की कमी है। खड़गपुर की स्थिति तो और भी बदतर है, जहां 69 फीसदी फैकल्टी के पद खाली हैं। सरकार के दबाव और इन संस्थानों द्वारा लगातार विज्ञापन दिए जाने के बावजूद सालाना 15 से 20 प्रतिशत पद ही भरे जा पा रहे हैं। सक्षम फैकल्टी न मिलने की बात पर आइआइटी मद्रास के निदेशक डॉ. भास्कर रामामूर्ति की यह बात उचित ही है कि उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद कम ही छात्र ऐसे होते हैं, जो एक टीचर के रूप में अपना करियर आरंभ करना चाहते हैं। ज्यादातर छात्र विदेश की राह पकड़ लेते हैं। ऐसे में टीचिंग के प्रोफेशन के प्रति नए सिरे से आकर्षण पैदा किए जाने की जरूरत है, ताकि डॉक्टर, इंजीनियर, आइएएस, आइटी प्रोफेशनल, जर्नलिस्ट, वकील आदि पेशों की तरह छात्र भी स्कूली दिनों से ही अध्यापक बनने का सपना देख सकें और टीचिंग को अपने करियर की मंजिल मानकर आगे बढ़ सकें। ऐसी स्थिति उत्पन्न करने के लिए जितने जरूरी सरकारी उपाय हैं, उतना ही जरूरी हम सभी को अपना माइंड-सेट बदलने की भी है। सुकून, सम्मान और सुविधाएं टीचिंग के प्रोफेशन में अब सैलरी तो आकर्षक है ही, लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि और किसी भी प्रोफेशन की तुलना में इसमें आज भी अधिकतम सुकून, सबसे अधिक सम्मान और सुविधाओं का होना है। अन्य नौकरियों की तरह इसमें अनावश्यक तनाव भी बिल्कुल नहीं है। हां, इस पेशे में आपका सम्मान इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसके प्रति कितनी ईमानदारी बरत रहे हैं, क्योंकि यह दूसरे पेशों की तरह कतई नहीं है। इसमें आपको देश और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को अच्छी तरह समझने की जरूरत होती है। आप सिर्फ एक बच्चे को ही नहीं पढ़ाते, बल्कि देश के एक जिम्मेदार नागरिक को तैयार करते हैं। उन्हीं में से कोई आप जैसा काबिल अध्यापक बनेगा, तो कोई देश का राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, न्यायाधीश, कलेक्टर, दुनिया में देश को पहचान दिलाने वाले प्रोफेशनल कुछ भी बन सकता है। सोचिए, जब आपको पता चलता है कि आपके किसी शिष्य ने कोई बड़ी उपलब्धि हासिल की है, तो कितनी खुशी मिलती होगी। युवा बढ़ाएं कदम देश के युवाओं को भी यह सोचना होगा कि सिर्फ अपने लिए पद और पैसा कमाने में ही जीवन की सार्थकता नहीं है, बल्कि देश और समाज के लिए अपने दायित्वों को समझने और उन्हें पूरा करने में है। ऐसे में उन्हें टीचिंग के प्रति रुझान बढ़ाना चाहिए, ताकि ज्यादा से ज्यादा युवा इस ओर आएं। बदलते समय के मुताबिक खुद भी पढ़ें और अपडेट रहें, साथ ही शिक्षण संस्थानों आदि के जरिए या स्वयं की पहल से दूसरों को पढ़ाएं। हम सब ऐसा करेंगे, तो ही देश लगातार आगे की ओर बढ़ेगा।1श में पठन-पाठन के प्रति लगाव रखने और इस दिशा में समुचित कदम उठाये जाने की लगातार आवाज उठाने वाले लोगों का ध्यान कल की दो ताजा खबरों ने जरूर खींचा होगा। हमेशा की तरह एक चिंताजनक खबर यह थी कि आइआइटी जैसे संस्थानों तक को ढूंढ़ने के बावजूद काबिल शिक्षक नहीं मिल पा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ राहत देने वाली खबर यह थी कि उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों में अब पढ़ाई के साथ-साथ पढ़ाना भी जरूरी करने पर विचार किया जा रहा है। उम्मीद यह भी जताई जा रही है कि आगामी आम बजट में केंद्र सरकार द्वारा इस बारे में विधिवत घोषणा भी की जा सकती है। फिलहाल बीएड जैसे टीचिंग से जुड़े पाठ्यक्रमों में ही छात्रों को पढ़ने के साथ पढ़ाने की अनिवार्यता है। यह योजना लागू हो जाने के बाद स्नातक कोर्सो के छात्रों को हर सप्ताह कम से कम तीन घंटे पढ़ाना होगा। शिक्षण प्रशिक्षण की जरूरत को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों से अपनी सुविधा के अनुसार आसपास के शिक्षण संस्थानों में सेवाएं देने की बार-बार की अपीलों की वजह से ऐसे तमाम लोगों ने स्कूलों में पढ़ाने की सकारात्मक पहल की है। अगर केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रलय की इस प्रस्तावित योजना ने मूर्त रूप ले लिया, तो स्कूलों में अध्यापकों की कमी की काफी हद तक भरपाई की जा सकेगी।आकर्षण बढ़ाने की जरूरत1हर किसी की जिंदगी को सही दिशा देने में अध्यापक का योगदान सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। सभी को अपने जीवन में कोई न कोई कभी न भुलाये जा सकने वाले टीचर जरूर मिले होंगे। आज हमें देश के भावी कर्णधारों को गढ़ने वाले सबसे काबिल अध्यापकों की सबसे ज्यादा जरूरत है। पर विडंबना यह है कि पिछले एक-दो दशकों से टीचिंग को उपेक्षित पेशा जैसा मान लिया गया है। उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले युवाओं की दिलचस्पी ज्यादा पैसे वाली आकर्षक नौकरियों में है। हालांकि हाल के वर्षो में प्राइमरी से लेकर कॉलेज-विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तक को मिलने वाली सैलरी और सुविधाओं में अच्छा-खासा इजाफा हुआ है, इसके बावजूद टीचिंग के प्रति युवाओं में क्रेज जैसी कोई बात नहीं बन पा रही है। ऐसे में इस सबसे सम्मानित पेशे का प्रचार-प्रसार करने, इसमें और आकर्षण जोड़ने और युवा पीढ़ी को इसके प्रति आकर्षित करने के लिए अभियान चलाने की जरूरत महसूस की जा रही है। जिस तरह एक कुम्हार या मूर्तिकार कच्ची मिट्टी को अपने कुशल हाथों से तराश कर तरह-तरह का मनभावन रूप दे देता है, उसी तरह एक अध्यापक भी बच्चों को संस्कार-ज्ञान-समझदारी की शिक्षा देकर जिम्मेदार नागरिक बनाने में अपना योगदान देता है। काबिल फैकल्टी की चुनौती! दिल्ली, मद्रास, खड़गपुर सहित देश की सभी 23 आइआइटी में फिलहाल औसतन 35 प्रतिशत से अधिक फैकल्टी की कमी है। खड़गपुर की स्थिति तो और भी बदतर है, जहां 69 फीसदी फैकल्टी के पद खाली हैं। सरकार के दबाव और इन संस्थानों द्वारा लगातार विज्ञापन दिए जाने के बावजूद सालाना 15 से 20 प्रतिशत पद ही भरे जा पा रहे हैं। सक्षम फैकल्टी न मिलने की बात पर आइआइटी मद्रास के निदेशक डॉ. भास्कर रामामूर्ति की यह बात उचित ही है कि उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद कम ही छात्र ऐसे होते हैं, जो एक टीचर के रूप में अपना करियर आरंभ करना चाहते हैं। ज्यादातर छात्र विदेश की राह पकड़ लेते हैं। ऐसे में टीचिंग के प्रोफेशन के प्रति नए सिरे से आकर्षण पैदा किए जाने की जरूरत है, ताकि डॉक्टर, इंजीनियर, आइएएस, आइटी प्रोफेशनल, जर्नलिस्ट, वकील आदि पेशों की तरह छात्र भी स्कूली दिनों से ही अध्यापक बनने का सपना देख सकें और टीचिंग को अपने करियर की मंजिल मानकर आगे बढ़ सकें। ऐसी स्थिति उत्पन्न करने के लिए जितने जरूरी सरकारी उपाय हैं, उतना ही जरूरी हम सभी को अपना माइंड-सेट बदलने की भी है।सुकून, सम्मान और सुविधाएं1टीचिंग के प्रोफेशन में अब सैलरी तो आकर्षक है ही, लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि और किसी भी प्रोफेशन की तुलना में इसमें आज भी अधिकतम सुकून, सबसे अधिक सम्मान और सुविधाओं का होना है। अन्य नौकरियों की तरह इसमें अनावश्यक तनाव भी बिल्कुल नहीं है। हां, इस पेशे में आपका सम्मान इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसके प्रति कितनी ईमानदारी बरत रहे हैं, क्योंकि यह दूसरे पेशों की तरह कतई नहीं है। इसमें आपको देश और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को अच्छी तरह समझने की जरूरत होती है। आप सिर्फ एक बच्चे को ही नहीं पढ़ाते, बल्कि देश के एक जिम्मेदार नागरिक को तैयार करते हैं। उन्हीं में से कोई आप जैसा काबिल अध्यापक बनेगा, तो कोई देश का राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, न्यायाधीश, कलेक्टर, दुनिया में देश को पहचान दिलाने वाले प्रोफेशनल कुछ भी बन सकता है। सोचिए, जब आपको पता चलता है कि आपके किसी शिष्य ने कोई बड़ी उपलब्धि हासिल की है, तो कितनी खुशी मिलती होगी। युवा बढ़ाएं कदम देश के युवाओं को भी यह सोचना होगा कि सिर्फ अपने लिए पद और पैसा कमाने में ही जीवन की सार्थकता नहीं है, बल्कि देश और समाज के लिए अपने दायित्वों को समझने और उन्हें पूरा करने में है। ऐसे में उन्हें टीचिंग के प्रति रुझान बढ़ाना चाहिए, ताकि ज्यादा से ज्यादा युवा इस ओर आएं। बदलते समय के मुताबिक खुद भी पढ़ें और अपडेट रहें, साथ ही शिक्षण संस्थानों आदि के जरिए या स्वयं की पहल से दूसरों को पढ़ाएं। हम सब ऐसा करेंगे, तो ही देश लगातार आगे की ओर बढ़ेगा। हमारे यहां करीब 800 विश्वविद्यालय, 94 केंद्रीय विवि, 76 कृषि विवि, 4000 कॉलेज और 1000 कृषि कॉलेज हैं।’ हमारे देश में हर साल 2.75 करोड़ छात्र स्नातक कक्षाओं में दाखिला लेते हैं, जिनमें से 3.5 लाख अकेले इंजीनियरिंग के होते हैं।
Source- Dainik Jagran
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पढ़ें पढ़ाएं- देश को बढ़ाएं
देश के भावी कर्णधारों
देश में पठन-पाठन के प्रति लगाव रखने और इस दिशा में समुचित कदम उठाये जाने की लगातार आवाज उठाने वाले लोगों का ध्यान कल की दो ताजा खबरों ने जरूर खींचा होगा। हमेशा की तरह एक चिंताजनक खबर यह थी कि आइआइटी जैसे संस्थानों तक को ढूंढ़ने के बावजूद काबिल शिक्षक नहीं मिल पा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ राहत देने वाली खबर यह थी कि उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों में अब पढ़ाई के साथ-साथ पढ़ाना भी जरूरी करने पर विचार किया जा रहा है।
उम्मीद यह भी जताई जा रही है कि आगामी आम बजट में केंद्र सरकार द्वारा इस बारे में विधिवत घोषणा भी की जा सकती है। फिलहाल बीएड जैसे टीचिंग से जुड़े पाठ्यक्रमों में ही छात्रों को पढ़ने के साथ पढ़ाने की अनिवार्यता है। यह योजना लागू हो जाने के बाद स्नातक कोर्सो के छात्रों को हर सप्ताह कम से कम तीन घंटे पढ़ाना होगा। शिक्षण प्रशिक्षण की जरूरत को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों से अपनी सुविधा के अनुसार आसपास के शिक्षण संस्थानों में सेवाएं देने की बार-बार की अपीलों की वजह से ऐसे तमाम लोगों ने स्कूलों में पढ़ाने की सकारात्मक पहल की है। अगर केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रलय की इस प्रस्तावित योजना ने मूर्त रूप ले लिया, तो स्कूलों में अध्यापकों की कमी की काफी हद तक भरपाई की जा सकेगी।1आकर्षण बढ़ाने की जरूरत1हर किसी की जिंदगी को सही दिशा देने में अध्यापक का योगदान सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। सभी को अपने जीवन में कोई न कोई कभी न भुलाये जा सकने वाले टीचर जरूर मिले होंगे। आज हमें देश के भावी कर्णधारों को गढ़ने वाले सबसे काबिल अध्यापकों की सबसे ज्यादा जरूरत है। पर विडंबना यह है कि पिछले एक-दो दशकों से टीचिंग को उपेक्षित पेशा जैसा मान लिया गया है। उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले युवाओं की दिलचस्पी ज्यादा पैसे वाली आकर्षक नौकरियों में है। हालांकि हाल के वर्षो में प्राइमरी से लेकर कॉलेज-विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तक को मिलने वाली सैलरी और सुविधाओं में अच्छा-खासा इजाफा हुआ है, इसके बावजूद टीचिंग के प्रति युवाओं में क्रेज जैसी कोई बात नहीं बन पा रही है। ऐसे में इस सबसे सम्मानित पेशे का प्रचार-प्रसार करने, इसमें और आकर्षण जोड़ने और युवा पीढ़ी को इसके प्रति आकर्षित करने के लिए अभियान चलाने की जरूरत महसूस की जा रही है। जिस तरह एक कुम्हार या मूर्तिकार कच्ची मिट्टी को अपने कुशल हाथों से तराश कर तरह-तरह का मनभावन रूप दे देता है, उसी तरह एक अध्यापक भी बच्चों को संस्कार-ज्ञान-समझदारी की शिक्षा देकर जिम्मेदार नागरिक बनाने में अपना योगदान देता है। 1काबिल फैकल्टी की चुनौती!1दिल्ली, मद्रास, खड़गपुर सहित देश की सभी 23 आइआइटी में फिलहाल औसतन 35 प्रतिशत से अधिक फैकल्टी की कमी है। खड़गपुर की स्थिति तो और भी बदतर है, जहां 69 फीसदी फैकल्टी के पद खाली हैं। सरकार के दबाव और इन संस्थानों द्वारा लगातार विज्ञापन दिए जाने के बावजूद सालाना 15 से 20 प्रतिशत पद ही भरे जा पा रहे हैं। सक्षम फैकल्टी न मिलने की बात पर आइआइटी मद्रास के निदेशक डॉ. भास्कर रामामूर्ति की यह बात उचित ही है कि उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद कम ही छात्र ऐसे होते हैं, जो एक टीचर के रूप में अपना करियर आरंभ करना चाहते हैं। ज्यादातर छात्र विदेश की राह पकड़ लेते हैं। ऐसे में टीचिंग के प्रोफेशन के प्रति नए सिरे से आकर्षण पैदा किए जाने की जरूरत है, ताकि डॉक्टर, इंजीनियर, आइएएस, आइटी प्रोफेशनल, जर्नलिस्ट, वकील आदि पेशों की तरह छात्र भी स्कूली दिनों से ही अध्यापक बनने का सपना देख सकें और टीचिंग को अपने करियर की मंजिल मानकर आगे बढ़ सकें। ऐसी स्थिति उत्पन्न करने के लिए जितने जरूरी सरकारी उपाय हैं, उतना ही जरूरी हम सभी को अपना माइंड-सेट बदलने की भी है। सुकून, सम्मान और सुविधाएं टीचिंग के प्रोफेशन में अब सैलरी तो आकर्षक है ही, लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि और किसी भी प्रोफेशन की तुलना में इसमें आज भी अधिकतम सुकून, सबसे अधिक सम्मान और सुविधाओं का होना है। अन्य नौकरियों की तरह इसमें अनावश्यक तनाव भी बिल्कुल नहीं है। हां, इस पेशे में आपका सम्मान इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसके प्रति कितनी ईमानदारी बरत रहे हैं, क्योंकि यह दूसरे पेशों की तरह कतई नहीं है। इसमें आपको देश और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को अच्छी तरह समझने की जरूरत होती है। आप सिर्फ एक बच्चे को ही नहीं पढ़ाते, बल्कि देश के एक जिम्मेदार नागरिक को तैयार करते हैं। उन्हीं में से कोई आप जैसा काबिल अध्यापक बनेगा, तो कोई देश का राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, न्यायाधीश, कलेक्टर, दुनिया में देश को पहचान दिलाने वाले प्रोफेशनल कुछ भी बन सकता है। सोचिए, जब आपको पता चलता है कि आपके किसी शिष्य ने कोई बड़ी उपलब्धि हासिल की है, तो कितनी खुशी मिलती होगी। युवा बढ़ाएं कदम देश के युवाओं को भी यह सोचना होगा कि सिर्फ अपने लिए पद और पैसा कमाने में ही जीवन की सार्थकता नहीं है, बल्कि देश और समाज के लिए अपने दायित्वों को समझने और उन्हें पूरा करने में है। ऐसे में उन्हें टीचिंग के प्रति रुझान बढ़ाना चाहिए, ताकि ज्यादा से ज्यादा युवा इस ओर आएं। बदलते समय के मुताबिक खुद भी पढ़ें और अपडेट रहें, साथ ही शिक्षण संस्थानों आदि के जरिए या स्वयं की पहल से दूसरों को पढ़ाएं। हम सब ऐसा करेंगे, तो ही देश लगातार आगे की ओर बढ़ेगा।1श में पठन-पाठन के प्रति लगाव रखने और इस दिशा में समुचित कदम उठाये जाने की लगातार आवाज उठाने वाले लोगों का ध्यान कल की दो ताजा खबरों ने जरूर खींचा होगा। हमेशा की तरह एक चिंताजनक खबर यह थी कि आइआइटी जैसे संस्थानों तक को ढूंढ़ने के बावजूद काबिल शिक्षक नहीं मिल पा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ राहत देने वाली खबर यह थी कि उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों में अब पढ़ाई के साथ-साथ पढ़ाना भी जरूरी करने पर विचार किया जा रहा है। उम्मीद यह भी जताई जा रही है कि आगामी आम बजट में केंद्र सरकार द्वारा इस बारे में विधिवत घोषणा भी की जा सकती है। फिलहाल बीएड जैसे टीचिंग से जुड़े पाठ्यक्रमों में ही छात्रों को पढ़ने के साथ पढ़ाने की अनिवार्यता है। यह योजना लागू हो जाने के बाद स्नातक कोर्सो के छात्रों को हर सप्ताह कम से कम तीन घंटे पढ़ाना होगा। शिक्षण प्रशिक्षण की जरूरत को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों से अपनी सुविधा के अनुसार आसपास के शिक्षण संस्थानों में सेवाएं देने की बार-बार की अपीलों की वजह से ऐसे तमाम लोगों ने स्कूलों में पढ़ाने की सकारात्मक पहल की है। अगर केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रलय की इस प्रस्तावित योजना ने मूर्त रूप ले लिया, तो स्कूलों में अध्यापकों की कमी की काफी हद तक भरपाई की जा सकेगी।आकर्षण बढ़ाने की जरूरत1हर किसी की जिंदगी को सही दिशा देने में अध्यापक का योगदान सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। सभी को अपने जीवन में कोई न कोई कभी न भुलाये जा सकने वाले टीचर जरूर मिले होंगे। आज हमें देश के भावी कर्णधारों को गढ़ने वाले सबसे काबिल अध्यापकों की सबसे ज्यादा जरूरत है। पर विडंबना यह है कि पिछले एक-दो दशकों से टीचिंग को उपेक्षित पेशा जैसा मान लिया गया है। उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले युवाओं की दिलचस्पी ज्यादा पैसे वाली आकर्षक नौकरियों में है। हालांकि हाल के वर्षो में प्राइमरी से लेकर कॉलेज-विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तक को मिलने वाली सैलरी और सुविधाओं में अच्छा-खासा इजाफा हुआ है, इसके बावजूद टीचिंग के प्रति युवाओं में क्रेज जैसी कोई बात नहीं बन पा रही है। ऐसे में इस सबसे सम्मानित पेशे का प्रचार-प्रसार करने, इसमें और आकर्षण जोड़ने और युवा पीढ़ी को इसके प्रति आकर्षित करने के लिए अभियान चलाने की जरूरत महसूस की जा रही है। जिस तरह एक कुम्हार या मूर्तिकार कच्ची मिट्टी को अपने कुशल हाथों से तराश कर तरह-तरह का मनभावन रूप दे देता है, उसी तरह एक अध्यापक भी बच्चों को संस्कार-ज्ञान-समझदारी की शिक्षा देकर जिम्मेदार नागरिक बनाने में अपना योगदान देता है। काबिल फैकल्टी की चुनौती! दिल्ली, मद्रास, खड़गपुर सहित देश की सभी 23 आइआइटी में फिलहाल औसतन 35 प्रतिशत से अधिक फैकल्टी की कमी है। खड़गपुर की स्थिति तो और भी बदतर है, जहां 69 फीसदी फैकल्टी के पद खाली हैं। सरकार के दबाव और इन संस्थानों द्वारा लगातार विज्ञापन दिए जाने के बावजूद सालाना 15 से 20 प्रतिशत पद ही भरे जा पा रहे हैं। सक्षम फैकल्टी न मिलने की बात पर आइआइटी मद्रास के निदेशक डॉ. भास्कर रामामूर्ति की यह बात उचित ही है कि उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद कम ही छात्र ऐसे होते हैं, जो एक टीचर के रूप में अपना करियर आरंभ करना चाहते हैं। ज्यादातर छात्र विदेश की राह पकड़ लेते हैं। ऐसे में टीचिंग के प्रोफेशन के प्रति नए सिरे से आकर्षण पैदा किए जाने की जरूरत है, ताकि डॉक्टर, इंजीनियर, आइएएस, आइटी प्रोफेशनल, जर्नलिस्ट, वकील आदि पेशों की तरह छात्र भी स्कूली दिनों से ही अध्यापक बनने का सपना देख सकें और टीचिंग को अपने करियर की मंजिल मानकर आगे बढ़ सकें। ऐसी स्थिति उत्पन्न करने के लिए जितने जरूरी सरकारी उपाय हैं, उतना ही जरूरी हम सभी को अपना माइंड-सेट बदलने की भी है।सुकून, सम्मान और सुविधाएं1टीचिंग के प्रोफेशन में अब सैलरी तो आकर्षक है ही, लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि और किसी भी प्रोफेशन की तुलना में इसमें आज भी अधिकतम सुकून, सबसे अधिक सम्मान और सुविधाओं का होना है। अन्य नौकरियों की तरह इसमें अनावश्यक तनाव भी बिल्कुल नहीं है। हां, इस पेशे में आपका सम्मान इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसके प्रति कितनी ईमानदारी बरत रहे हैं, क्योंकि यह दूसरे पेशों की तरह कतई नहीं है। इसमें आपको देश और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को अच्छी तरह समझने की जरूरत होती है। आप सिर्फ एक बच्चे को ही नहीं पढ़ाते, बल्कि देश के एक जिम्मेदार नागरिक को तैयार करते हैं। उन्हीं में से कोई आप जैसा काबिल अध्यापक बनेगा, तो कोई देश का राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, न्यायाधीश, कलेक्टर, दुनिया में देश को पहचान दिलाने वाले प्रोफेशनल कुछ भी बन सकता है। सोचिए, जब आपको पता चलता है कि आपके किसी शिष्य ने कोई बड़ी उपलब्धि हासिल की है, तो कितनी खुशी मिलती होगी। युवा बढ़ाएं कदम देश के युवाओं को भी यह सोचना होगा कि सिर्फ अपने लिए पद और पैसा कमाने में ही जीवन की सार्थकता नहीं है, बल्कि देश और समाज के लिए अपने दायित्वों को समझने और उन्हें पूरा करने में है। ऐसे में उन्हें टीचिंग के प्रति रुझान बढ़ाना चाहिए, ताकि ज्यादा से ज्यादा युवा इस ओर आएं। बदलते समय के मुताबिक खुद भी पढ़ें और अपडेट रहें, साथ ही शिक्षण संस्थानों आदि के जरिए या स्वयं की पहल से दूसरों को पढ़ाएं। हम सब ऐसा करेंगे, तो ही देश लगातार आगे की ओर बढ़ेगा। हमारे यहां करीब 800 विश्वविद्यालय, 94 केंद्रीय विवि, 76 कृषि विवि, 4000 कॉलेज और 1000 कृषि कॉलेज हैं।’ हमारे देश में हर साल 2.75 करोड़ छात्र स्नातक कक्षाओं में दाखिला लेते हैं, जिनमें से 3.5 लाख अकेले इंजीनियरिंग के होते हैं।
Source- Dainik Jagran
Saturday, January 20, 2018
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इसलिए हमें यह समझने की जरूरत है कि करियर में हमें पूर्ण संतुष्टि औरआनंद का एहसास क्या देता है। यहां कुछ कदम बताए गए हैं, जो आप अपना करियर डिटॉक्स करने के लिए उठा सकते हैं: मन में करें शुरुआत अपने करियर का ऑडिट करें। जब आप अपने जीवन की पुन: योजना बनाते हैं, तब काम और करियर के सभी खराब अनुभवों को बाहर बह जाने दें। यह समङों कि अभी तक आपकी करियर यात्र क्या रही है, अपनी शक्तियों और कमजोरियों को लिखें और अपनी विशेषज्ञता के क्षेत्रों की पहचान करें। यह पहचान करें कि आपकी रुचि किन क्षेत्रों में है। आपके जुनून क्या हैं और वह क्या है, जिस पर आप अपने शेष जीवनकाल में ध्यान एकाग्र करना चाहते हैं। उस चीज को खोजें, जिसकी ओर आपकी रुचियां हैं। शायद वह आपके करियर के शेष भाग के लिए एक नया आरंभिक बिंदु होगा। हुनर को दें नया रूप यह संभव है कि आप वित्त प्रबंधन में अच्छे हों, फिर भी वित्त व्यवस्था से जुड़े करियर में काम करने का विचार आपको बिल्कुल भी रोमांचित न करता हो। शायद आप खेलकूद में भी अच्छे हों, लेकिन अपनी आयु को देखते हुए एक खिलाड़ी के रूप में करियर बनाने की नहीं सोच सकते। इस स्थिति में दोनों का मिश्रण कीजिए। खेलकूद में अपनी रुचि और वित्त प्रबंधन में अपने हुनर का मिश्रण कीजिए। शायद आप खेलकूद के सितारों के लिए वित्त प्रबंधन करने के करियर के चारों ओर काम कर सकें। इसी तरह, आप दो या दो से अधिक करियर क्षेत्रों के हुनर का मिश्रण कर सकते हैं और करियर के एक नए मार्ग का सृजन कर सकते हैं। जारी रखें सीखना नए पाठ्यक्रमों में प्रवेश लीजिए। आप जिन विषयों में अच्छे हैं, उन्हें और ज्यादा गहराई से खंगालिए या ऐसे करियर स्ट्रीम में प्रवेश लीजिए, जो आपके लिए पूर्णतया नए हैं।
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लाइफ स्किल
‘डिटॉक्स’
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जब हम ‘डिटॉक्स’ शब्द सुनते हैं, तो शायद हम अपनी सब्जियों की मात्र बढ़ाने, शराब का सेवन बंद करने और अपनी त्वचा का पोषण करने की सोचते हैं। जैसे हमारे स्वास्थ्य के लिए हमारे शरीर को डिटॉक्स करना बेहद जरूरी है, ठीक वैसे ही अपने करियर को डिटॉक्स करने से हमें अनेक लाभ मिल सकते हैं। जैसे खान-पान की अस्वास्थ्यकर आदतें और खराब चयन हमारी सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं, ठीक वैसे ही अपने करियर में नाखुश होना हमारे कल्याण के लिए उतना ही जहरीला होता है।
इसलिए हमें यह समझने की जरूरत है कि करियर में हमें पूर्ण संतुष्टि औरआनंद का एहसास क्या देता है। यहां कुछ कदम बताए गए हैं, जो आप अपना करियर डिटॉक्स करने के लिए उठा सकते हैं: मन में करें शुरुआत अपने करियर का ऑडिट करें। जब आप अपने जीवन की पुन: योजना बनाते हैं, तब काम और करियर के सभी खराब अनुभवों को बाहर बह जाने दें। यह समङों कि अभी तक आपकी करियर यात्र क्या रही है, अपनी शक्तियों और कमजोरियों को लिखें और अपनी विशेषज्ञता के क्षेत्रों की पहचान करें। यह पहचान करें कि आपकी रुचि किन क्षेत्रों में है। आपके जुनून क्या हैं और वह क्या है, जिस पर आप अपने शेष जीवनकाल में ध्यान एकाग्र करना चाहते हैं। उस चीज को खोजें, जिसकी ओर आपकी रुचियां हैं। शायद वह आपके करियर के शेष भाग के लिए एक नया आरंभिक बिंदु होगा। हुनर को दें नया रूप यह संभव है कि आप वित्त प्रबंधन में अच्छे हों, फिर भी वित्त व्यवस्था से जुड़े करियर में काम करने का विचार आपको बिल्कुल भी रोमांचित न करता हो। शायद आप खेलकूद में भी अच्छे हों, लेकिन अपनी आयु को देखते हुए एक खिलाड़ी के रूप में करियर बनाने की नहीं सोच सकते। इस स्थिति में दोनों का मिश्रण कीजिए। खेलकूद में अपनी रुचि और वित्त प्रबंधन में अपने हुनर का मिश्रण कीजिए। शायद आप खेलकूद के सितारों के लिए वित्त प्रबंधन करने के करियर के चारों ओर काम कर सकें। इसी तरह, आप दो या दो से अधिक करियर क्षेत्रों के हुनर का मिश्रण कर सकते हैं और करियर के एक नए मार्ग का सृजन कर सकते हैं। जारी रखें सीखना नए पाठ्यक्रमों में प्रवेश लीजिए। आप जिन विषयों में अच्छे हैं, उन्हें और ज्यादा गहराई से खंगालिए या ऐसे करियर स्ट्रीम में प्रवेश लीजिए, जो आपके लिए पूर्णतया नए हैं।
लाइफ स्किल
विनीत टंडन (म्यूजिक मोटिवेशनल स्पीकर)
Monday, January 8, 2018
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Monday, January 1, 2018
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लाइफ स्किल
नए साल पर लाइफ को करें रीसेट
पूरे संसार में नए साल के आगमन का उत्सव पूरे उल्लास-उमंग से मनाया जाता है। नए साल के आगमन पर एक सुदृढ़ परंपरा है कि लोग अपने अंदर सुधार लाने या अपनी बेहतरी के लिए नए-नए संकल्प ग्रहण करते हैं। ये वजन घटाने के सरल संकल्प से लेकर तनावपूर्ण संबंधों में सुधार लाने और इसी तरह के अन्य संकल्प हो सकते हैं। मनुष्य की इच्छाओं की भांति इन संकल्पों की सूची भी अनंत है।
इसके अलावा, जनवरी को हम जो उत्सव मनाते हैं, वह कुछ नहीं अपितु वही जार्जियाई कैलेंडर है, जिसे पूरे संसार में प्रमुखता से स्वीकार किया जाता है, हालांकि भारत सहित अनेक देशों में नए साल का उत्सव मनाने के लिए उनकी अपनी परंपराएं, तिथियां और रीतियां हैं। उदाहरणार्थ, भारत में विभिन्न राज्य फसलों की कटाई के समय, गुड़ी पाड़वा, बैसाखी आदि के रूप में नए साल का उत्सव मनाते हैं। इसी तरह, वहां नए साल के अवसर पर सौभाग्यशाली होने के अनुष्ठान किए जाने की भी परंपरा है। पुर्तगाली देशों में लोग, जिनके लिए वृत्त अर्थात गोल घेरा सफलता का प्रतीक है, डोनट खाते हैं। जापानी लोग नए साल के अवसर पर पिछले साल की समस्याओं एवं चिंताओं को विदा करने और एक बेहतर साल की तैयारी करने के लिए ‘बोनेंकैई’ अर्थात ‘पुराने साल-को-भूल जाओ’ दावत का आयोजन करते हैं।1 बहरहाल, बदलते तमाम सालों के दौरान, मैं हमेशा हैरान रहा हूं कि इस दिन ऐसा क्या इतना कुछ बदल जाता है कि यह एक पूरे विश्वव्यापी उत्सव में बदल जाता है? मध्य रात्रि में घड़ी की सूइयों के 12:00 पर पहुंचते ही ऐसा क्या होता है कि पूरा संसार एक-दूसरे को नए साल की बधाई देने लगता है। चारों ओर आसमान में आतिशबाजी होने लगती है और लोग बस पूरे जोश से पार्टी कर रहे होते हैं। सरल शब्दों में कहा जाए तो नया साल सभी चीजों को ठीक करने के लिए एक आधिकारिक रीसेट बटन है। यह कंप्यूटरों की भाषा में एक trlकी तरह है, जो हमें हमारे हृदय में बूट करता है। इसलिए मित्रो, भले उत्सव मनाने के लिए आपका कारण कुछ भी हो, आनंद फिल्म का सदाबहार गीत याद जरूर रखिये: जिंदगी, कैसी है पहेली हाये, कभी ये हंसाये, कभी ये रुलाये..। नव वर्ष शुभ हो। भले ही आप कुछ भी करें, सदा मुस्कुराते रहें
लाइफ स्किल
विनीत टंडन (म्यूजिक मोटिवेशनल स्पीकर)
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