Wednesday, September 6, 2017

लिंग

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लिंग

लिंग शब्द का अर्थ होता है चिह्न या पहचान। व्याकरण के अन्तर्गत लिंग उसे कहते हैं, जिसके द्वारा किसी शब्द के स्त्री या पुरुष जाति का होने का बोध होता है।

लिंग दो प्रकार के होते हैं -




पुल्लिंग
स्त्री लिंग
1. पुल्लिंग

जिसके द्वारा किसी शब्द की पुरुष जाति का बोध होता है, उसे पुल्लिंग कहते हैं।

जैसे - राम, काला, पहाड़, सोना।

2. स्त्रीलिंग

जिसके द्वारा किसी शब्द की स्त्री जाति का बोध होता है, उसे स्त्रीलिंग कहते हैं।

जैसे - सीमा, अध्यापिका, एकादशी, लता।

लिंग की पहचान

लिंग की पहचान शब्दों के व्यवहार से होती है।

तथ्य
जिन शब्दों के अन्त में आँ, एँ लगा सके वो स्त्री लिंग होगा। शेष सभी पुल्लिंग होंगे।

जिन शब्दों के अन्तिम व्यंजन पर बड़े ऊ व बड़ी ई कि मात्रा हो मुख्यतः स्त्री लिंग होते हैं।

पुलिंग

प्राणीवाचक पुल्लिंग

पुरूष, मनुष्य,लड़का,कौवा, उल्लू, खटमल,तोता,बाज,सांप,मेंढ़क,गैण्डा,कछुआ,पशु,बैल,कुत्ता।

अप्राणिवाचक पुल्लिंग

पर्वतों के नाम, महीनों के नाम, दिनों या वारों के नाम, ग्रहों के नाम, देशों के नाम, वृक्षों के नाम, अनाजों के नाम(अपवाद ज्वार), द्रव पदार्थों के नाम, समय सुचक नाम, देवताओं के नाम,धातुओं के नाम(अपवाद चांदी), समुद्रों के नाम मुख्य रूप से पुल्लिंग में आते हैं। इनके अलावा शरीर के अंगों के नाम भी पुल्लिंग में आते है लेकिन कुछ अपवाद स्वरूप(ठुडी, कोहनी, जीभ,गर्दन,अंगुली) भी हैं।

जैसे - भारत, सूर्य, सोना, नीम, बाजरा, पीतल, सोमवार, चैत्र, जुन, हिमालय।

स्त्रीलिंग

भाषाओं, बोलियों, लिपियों, तिथियों,नदियों,देवियों, महिलाओं के नाम, लताओं के नाम मुख्य रूप से स्त्रीलिंग में आते हैं।

जैसे - गंगा, देवनागरी, हिन्दी, एकादशी, दुर्गा, सीता, अमर बेल।
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कारक

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कारक

 व्याकरण के सन्दर्भ में, किसी वाक्य, मुहावरा या वाक्यांश में संज्ञा या सर्वनाम का क्रिया के साथ सम्बन्ध कारक कहलाता है। 



अर्थात् व्याकरण में संज्ञा या सर्वनाम शब्द की वह अवस्था जिसके द्वारा वाक्य में उसका क्रिया के साथ संबंध प्रकट होता है। कारक यह इंगित करता है कि वाक्य में संज्ञा या सर्वनाम का काम क्या है। कारक कई रूपों में देखने को मिलता है-

शब्दों में विकार - जैसे 'लड़का' से 'लड़के' ; 'मैं' से 'मुझको', 'मेरा' आदि।
शब्दों के बाद कुछ शब्द आना - 'गाय को', 'वृक्ष से', 'राम का', 'पानी में',
अन्य रूप
कुछ भाषाओं में संज्ञा और सर्वनाम के अतिरिक्त विशेषण और क्रियाविशेषण (ऐडवर्ब) में भी विकार आते हैं। जैसे संस्कृत में - 'शीतलेन जलेन' में 'शीतलेन' विशेषण है।

विभिन्न भाषाओं में कारकों की संख्या तथा कारक के अनुसार शब्द का रूप-परिवर्तन भिन्न-भिन्न होता है। संस्कृत तथा अन्य प्राचीन भरतिय भाषाओं में आठ कारक होते हैं। जर्मन भाषा में चार कारक हैं।

कारक विभक्ति - संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों के बाद ‘ने, को, से, के लिए’, आदि जो चिह्न लगते हैं वे चिह्न कारक 'विभक्ति' कहलाते हैं।

कारक के भेद[संपादित करें]
हिन्दी में आठ कारक होते हैं। उन्हें विभक्ति चिह्नों सहित नीचे देखा जा सकता है-

कारक -- विभक्ति चिह्न (परसर्ग)

1. कर्ता -- ने

2. कर्म -- को

3. करण -- से, के साथ, के द्वारा

4. संप्रदान -- के लिए, को

5. अपादान -- से (पृथक)

6. संबंध -- का, के, की

7. अधिकरण -- में, पर

8. संबोधन -- हे ! अरे ! ओ!

कारक चिह्न स्मरण करने के लिए इस पद की रचना की गई हैं-

कर्ता ने अरु कर्म को, करण रीति से जान।
संप्रदान को, के लिए, अपादान से मान।।
का, के, की, संबंध हैं, अधिकरणादिक में मान।
रे ! हे ! हो ! संबोधन, मित्र धरहु यह ध्यान।।
विशेष - कर्ता से अधिकरण तक विभक्ति चिह्न (परसर्ग) शब्दों के अंत में लगाए जाते हैं, किन्तु संबोधन कारक के चिह्न-हे, रे, आदि प्रायः शब्द से पूर्व लगाए जाते हैं।

कर्ता कारक
जिस रूप से क्रिया (कार्य) के करने वाले का बोध होता है वह ‘कर्ता’ कारक कहलाता है। इसका विभक्ति-चिह्न ‘ने’ है। इस ‘ने’ चिह्न का वर्तमानकाल और भविष्यकाल में प्रयोग नहीं होता है। इसका सकर्मक धातुओं के साथ भूतकाल में प्रयोग होता है। जैसे- 1.राम ने रावण को मारा। 2.लड़की स्कूल जाती है।

पहले वाक्य में क्रिया का कर्ता राम है। इसमें ‘ने’ कर्ता कारक का विभक्ति-चिह्न है। इस वाक्य में ‘मारा’ भूतकाल की क्रिया है। ‘ने’ का प्रयोग प्रायः भूतकाल में होता है। दूसरे वाक्य में वर्तमानकाल की क्रिया का कर्ता लड़की है। इसमें ‘ने’ विभक्ति का प्रयोग नहीं हुआ है।

विशेष-
(1) भूतकाल में अकर्मक क्रिया के कर्ता के साथ भी ने परसर्ग (विभक्ति चिह्न) नहीं लगता है। जैसे-वह हँसा।

(2) वर्तमानकाल व भविष्यतकाल की सकर्मक क्रिया के कर्ता के साथ ने परसर्ग का प्रयोग नहीं होता है। जैसे-वह फल खाता है। वह फल खाएगा।

(3) कभी-कभी कर्ता के साथ ‘को’ तथा ‘स’ का प्रयोग भी किया जाता है। जैसे-

(अ) बालक को सो जाना चाहिए। (आ) सीता से पुस्तक पढ़ी गई।

(इ) रोगी से चला भी नहीं जाता। (ई) उससे शब्द लिखा नहीं गया।

कर्म कारक

क्रिया के कार्य का फल जिस पर पड़ता है, वह कर्म कारक कहलाता है। इसका विभक्ति-चिह्न ‘को’ है। यह चिह्न भी बहुत-से स्थानों पर नहीं लगता। जैसे- 1. मोहन ने साँप को मारा। 2. लड़की ने पत्र लिखा। पहले वाक्य में ‘मारने’ की क्रिया का फल साँप पर पड़ा है। अतः साँप कर्म कारक है। इसके साथ परसर्ग ‘को’ लगा है। दूसरे वाक्य में ‘लिखने’ की क्रिया का फल पत्र पर पड़ा। अतः पत्र कर्म कारक है। इसमें कर्म कारक का विभक्ति चिह्न ‘को’ नहीं लगा।

करण कारक

संज्ञा आदि शब्दों के जिस रूप से क्रिया के करने के साधन का बोध हो अर्थात् जिसकी सहायता से कार्य संपन्न हो वह करण कारक कहलाता है। इसके विभक्ति-चिह्न ‘से’ के ‘द्वारा’ है। जैसे- 1.अर्जुन ने जयद्रथ को बाण से मारा। 2.बालक गेंद से खेल रहे है।

पहले वाक्य में कर्ता अर्जुन ने मारने का कार्य ‘बाण’ से किया। अतः ‘बाण से’ करण कारक है। दूसरे वाक्य में कर्ता बालक खेलने का कार्य ‘गेंद से’ कर रहे हैं। अतः ‘गेंद से’ करण कारक है।

संप्रदान कारक
संप्रदान का अर्थ है-देना। अर्थात कर्ता जिसके लिए कुछ कार्य करता है, अथवा जिसे कुछ देता है उसे व्यक्त करने वाले रूप को संप्रदान कारक कहते हैं। इसके विभक्ति चिह्न ‘के लिए’ को हैं। 1.स्वास्थ्य के लिए सूर्य को नमस्कार करो। 2.गुरुजी को फल दो। इन दो वाक्यों में ‘स्वास्थ्य के लिए’ और ‘गुरुजी को’ संप्रदान कारक हैं।

अपादान कारक
संज्ञा के जिस रूप से एक वस्तु का दूसरी से अलग होना पाया जाए वह अपादान कारक कहलाता है। इसका विभक्ति-चिह्न ‘से’ है। जैसे- 1.बच्चा छत से गिर पड़ा। 2.संगीता घोड़े से गिर पड़ी। इन दोनों वाक्यों में ‘छत से’ और घोड़े ‘से’ गिरने में अलग होना प्रकट होता है। अतः घोड़े से और छत से अपादान कारक हैं।

संबंध कारक
शब्द के जिस रूप से किसी एक वस्तु का दूसरी वस्तु से संबंध प्रकट हो वह संबंध कारक कहलाता है। इसका विभक्ति चिह्न ‘का’, ‘के’, ‘की’, ‘रा’, ‘रे’, ‘री’ है। जैसे- 1.यह राधेश्याम का बेटा है। 2.यह कमला की गाय है। इन दोनों वाक्यों में ‘राधेश्याम का बेटे’ से और ‘कमला का’ गाय से संबंध प्रकट हो रहा है। अतः यहाँ संबंध कारक है।

अधिकरण कारक
शब्द के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध होता है उसे अधिकरण कारक कहते हैं। इसके विभक्ति-चिह्न ‘में’, ‘पर’ हैं। जैसे- 1.भँवरा फूलों पर मँडरा रहा है। 2.कमरे में टी.वी. रखा है। इन दोनों वाक्यों में ‘फूलों पर’ और ‘कमरे में’ अधिकरण कारक है।

संबोधन कारक
जिससे किसी को बुलाने अथवा सचेत करने का भाव प्रकट हो उसे संबोधन कारक कहते है और संबोधन चिह्न (!) लगाया जाता है। जैसे- 1.अरे भैया ! क्यों रो रहे हो ? 2.हे गोपाल ! यहाँ आओ। इन वाक्यों में ‘अरे भैया’ और ‘हे गोपाल’ ! संबोधन कारक है।


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अव्यय(अविकारी शब्द)

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अव्यय(अविकारी शब्द)

वे शब्द जिनमें लिंग वचन कारक आदि के कारण कोई परिवर्तन नहीं होता उन्हें अव्यय या अविकारी शब्द कहते हैं



जैसे - कैसे,कहां,कितना।

उदाहरण
निम्न में से अविकारी शब्द है-

1. कौन 2. कब 2. किसने 4. यह

उत्तर

क्योंकि कौन प्र.व.सर्वनाम व एक वचन कर्ता है जिस पर लिंग, कारक व वचन बदलने पर परिवर्तन होता है कब एक अव्यय है जिस पर लिंग, वचन या कारक के बदलने पर कोई प्रभाव नहीं होगा इसी प्रकार किसने प्र.व.सर्वनाम एक वचन कर्ता है और यह अ.प.सर्वनाम एक वचन कर्ता है।

अव्यय के मुख्य रूप से चार भेद होते हैं -

क्रिया विशेषण
संबंध बोधक
समुच्चय बोधक
विस्मयादि बोधक
अन्य भेदों में निपात व अव्ययीभाव समास के उदाहरण है।

1. क्रिया विशेषण

क्रिया शब्दों कि विशेषता प्रकट करने वाले शब्द क्रिया विशेषण कहलाते है क्रिया विशेषण के मुख्यतः चार भेद होत है।

1. रीति वाचक क्रि.वि - कैसे

2. स्थान वाचक क्रि.वि. - कहां

3. काल वााचक क्रि.वि. - कब

4. परिमाण वाचक क्रि.वि. - कितना

रीति वाचक क्रि.वि.

क्रिया से पुर्व प्रश्नवाचक अव्यय कैसे का प्रयोग करने पर जो क्रिया विशेषण उत्तर में आये उसे रिति वाचक क्रिया विशेषण माना जाता है।

जैसे - सुन्दर, अच्छा, मीठा, धीरे-धीरे,तेज।

उदाहरण - हमारे सामने शेर अचानक आ गया

यहां कैसे से प्रश्न करने पर शेर हमारे सामने कैसे आ गया। इसका उत्तर अचानक जो कि आ गया क्रिया की विशेषता बतलाता है अतः अचानक अव्यय है।

स्थान वाचक क्रि.वि.

क्रिया से पुर्व प्रश्नवाचक अव्यय कहां का प्रयोग करने पर उत्तर में जो क्रिया विशेषण शब्द आए उसे स्थान वाचक क्रिया विशेषण माना जाता है।

जैसे - यहां,वहां,सामने,ऊपर,निचे,दाएं,बाएं।

उदाहरण - आज मैं वहां जाऊंगा।

यहां कहां से प्रश्न करने पर आज तुम कहां जाओगे। इसका उत्तर वहां जो कि जाऊंगा क्रिया की विशेषता बतलाता है अतः वहां अव्यय है।

काल वाचक क्रि.वि.

क्रिया से पहले प्रश्नवाचक अव्यय कब का प्रयोग करने पर उत्तर में जो शब्द आये वह काल वाचक क्रिया विशेषण होता है।

जैसे - कल,परसों,आज,सुबह,शाम,पहले बाद में।

उदाहरण - मोहन कल हनुमानगढ़ आयेगा।

यहां कब से प्रशन करने पर मोहन कब हनुमानगढ़ जायेगा। इसका उत्तर कल जो कि जायेगा क्रिया कि विशेषता है। अतः कल अव्यय है।

परिमाण वाचक क्रि.वि.

क्रिया से पुर्व प्रश्न वाचक अव्यय कितना का प्रयोग करने पर जो शब्द उत्तर में आये उसे परिमाण वाचक क्रिया विशेषण माना जाता है।

जैसे - कम,ज्यादा,अधिक,बहुत,थोड़ा।

उदाहरण - राम ने भोजन थोड़ा खाया है।

यहां कितना से प्रश्न करने पर राम ने कितना भोजन खाया। इसका उत्तर थोड़ा जो कि खाया क्रिया कि विशेषता है। अतः थोड़ा अव्यय है।

तथ्य
बहुत से शब्द ऐसे हैं जिनका प्रयोग विशेषण तथा क्रिया विशेषण दोनों के लिए हो जाता है

जैसे - कम,ज्यादा,अधिक,बहुत,थोड़ा,आधा पुरा,सुन्दर,अच्छा मिठा।

इन शब्दों का प्रयोग संज्ञा या सर्वनाम के लिए हो तो इन्हें विशेषण माना जायेगा, तथा इनका प्रयोग क्रिया के लिए हो तो इन्हें क्रिया विशेषण माना जायेगा।

उदाहरण
मोर सुन्दर नाचा। मोर सुन्दर है।

पहले वाक्य में सुन्दर क्रिया विशेषण है जो कि नाचा क्रिया कि विशेषता बता रहा है, जबकि दुसरे वाक्य में सुन्दर विशेषण है जो कि मोर कि विशेषता बता रहा है।

जैसे वह आम कम(क्रि.वि.) खाता है। वह कम(वि.) आम खाता है।

जिस प्रकार विशेषण शब्दों की विशेषता प्रविशेषण कहलाती है उसी प्रकार क्रिया विशेषण शब्दों कि विशेषता प्रक्रियाविशेषण कहलाती है।

उदाहरण
उदाहरण मोर बहुत सुन्दर है। मोर बहुत सुन्दर नाचा।

यहां पहले वाक्य में बहुत, सुन्दर विशेषण कि विशेषत बता रहा है। अतः यह प्रविशेषण है। दुसरे वाक्य में बहुत, सुन्दर क्रियाविशेषण कि विशेषता बता रहा है। अतः यह प्रक्रियाविशेषण है।

2. संबंध बोधक अव्यय

वे अव्यय शब्द जिनका प्रयोग वाक्य में वाक्य में प्रयुक्त क्रिया या अन्य शब्दों के साथ जोड़ने के लिए किया जाता है। उन्हें संबंध बोधक कहते है।

बहुत से शब्दों का प्रयोग क्रिया वि. तथा संबंध बोधक दोनों में होता है। जैसे यहां, वहां, ऊपर, निचे, सामने, पहले, दायें, बाएं, बाद, कम, ज्यादा,अधिक बहुत आदि।इन शब्दों से पहले कारक चिन्ह का,के,कि,रा,रे,री,ना,ने,नी,से आ जाये तो इन्हें संबंध बोधक अव्यय माना जायेगा। तथा इनसे पहले ये कारक चिन्ह न आये तो इन्हें क्रि.वि. माना जायेगा।

जैसे - राम बाद में जायेगा।

यहां बाद क्रिया विशेषण है।

राम भोजन के बाद जायेगा।

यहां बाद संबंध बता रहा है।

3. समुच्य बोधक अव्यय

दो शब्दों या वाक्यों को जोड़ने या उनमें अलगाव(अलग होना) दिखाने वाले अव्यय समुच्च बोधक अव्यय कहलाते है।

ये मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं -

संयोजक
विभाजक
1. संयोजक - दो शब्दों या वाक्यों को जोड़ने वाले अव्यय संयोजक कहलाते है।

जैसे - कि,और,एवं,तथा,व,इसलिए।

उदाहरण
निम्न में से भिन्न प्रकृति का समुच्य बोधक है-

1. कि 2. क्योंकि 3. ताकि 4. परन्तु

उत्तर

इनमें 'कि' भिन्न है क्योंकि कि संयोजक है तथा बाकि तीनों विभाजक समुच्य बोधक है।

2. विभाजक - दो शब्दों या दो वाक्यों में अलगाव दिखाने वाले अव्यय विभाजक कहलाते है।

जैसे- या, अथवा, अन्यथा, परन्तु, अपितु, जबकि, किन्तु।

4. विस्मयादि बोधक अव्यय

इसमें भाव का बोध होना जरूरी है

जैसे - भय,डर,घृणा,शोक,हर्ष,खेद,कष्ट आदि भावों की अभिव्यक्ति करने वाले शब्द विस्मयादि बोधक अव्यय कहलाते हैं।

उदाहरण
निम्न में से इच्छा वाचक विस्मयादिबोधक अव्यय है-

1. उफ! 2. वाह! 3. हाय! 4. क्या!

उत्तर 

इनमें 'हाय!' इच्छा वाचक है। और इस इच्छा वाचक अव्यय का प्रयोग सामान्यतः महिलाओं द्वारा ही किया जाता है उदाहरण के लिए 'हाय!' यह पर्स कितना अच्छा है। यहां पर हाय! से उनकी भावना उस पर्स को पाने कि इच्छा दर्शाती है।

5. निपास

किसी सामान्य कथन को बल देकर प्रस्तुत करने के लिए निपात का प्रयोग किया जाता है।

जैसे - ही,भी तो, तक आदि।

उदाहरण
तुम तो कल जयपुर जाने वाले थे।

यहां पर 'तो ' का प्रयोग वाक्य पर बल देने के लिए कहा गया है।
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विशेषण

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विशेषण

संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता प्रकट करने वाले शब्द विशेषण कहलाते हैं।



जैसे - वह मोर सुन्दर है।, यह आम मिठा है।

इनमें सुन्दर और मिठा विशेषण है।

उदाहरण
वह मोर सुन्दर नाचा। वाक्य में विशेषण पद है -

(क) वह

(ख) मोर

(ग) सुन्दर

(घ) नाचा

उत्तर -

क्योंकि वह शब्द मोर की विशेषता बता रहा है कि वह मोर सुन्दर नाचा। सुन्दर विशेषण नहीं हैं क्योंकि यह नाचा क्रिया कि विशेषता बता रहा है न कि संज्ञा या सर्वनाम की। इसलिए यह क्रिया विशेषण है।

विशेषण के मुख्यत पांच भेद होते हैं।

1. गुणवाचक विशेषण

2. परिमाण वाचक विशेषण

निश्चय परिमाण वाचक
अनिश्चय परिमाण वाचक
3. संख्यावाचक विशेषण

(क) अनिश्चित संख्यावाचक

(ख) निश्चित संख्यावाचक

गणनावाचक
क्रम वाचक
आवृति वाचक
समुह वाचक
4. संकेत वाचक विशेषण

5. व्यक्ति वाचक विशेषण

* विभाव वाचक विशेषण

1. गुणवाचक विशेषण

संज्ञा या सर्वनाम का गुण, गुणवाचक विशेषण कहलाता है। जैसे- अच्छा,मीठा,काला,पीला,मोटा,पतला,सुन्दर,बुरा।

वह लड़का अच्छा है।

2. परिमाण वाचक विशेषण

संज्ञा या सर्वनाम का माप तौल।

(क) निश्चित परिमाण - लीटर, मीटर, किलोग्राम, टन, तौला।

जैसे- एक लीटर दुध।

(ख) अनिश्चित परिमाण -थोड़ा, ज्यादा, बहुत, कम, अधिक, सारा।

जैसे- थौड़ी सी चिनी।

3. संख्या वाचक विशेषण

संज्ञा या सर्वनाम की संख्या।

(क) अनिश्चित संख्या - कम,ज्यादा,थोड़ा, बहुत, अधिक, सारे।

कुछ घर कच्चे हैं।

(ख) निश्चित संख्या -

(i) गणना वाचक - एक, दो तीन।

तीन लोग बातें कर रहे थे।

(ii) क्रम वाचक - पहला,दुसरा,तीसरा।

दुसरा लड़का अच्छा है।

(iii) आवृति वाचक - दुगना, तिगुना, इकहरा, दोहरा।

घी दुगना है।

(iv)समुह वाचक - दोनों, पांचों, सातों।

4. संकेत वाचक विशेषण

संज्ञा व सर्वनाम की ओर संकेत करने वाले शब्द संकेत वाचक विशेषण कहलाते हैं।

सर्वनाम शब्दों का प्रयोग जब किसी संज्ञा के लिए या किसी अन्य सर्वनाम के लिए किया जाये तो उन्हें संकेत वाचक विशेषण कहते हैं।

सर्वनाम शब्दों से विशेषण बनने के कारण संकेतवाचक विशेषण को सार्वनामिक विशेषण भी कहा जाता है।

5. व्यक्ति वाचक विशेषण

व्यक्ति वाचक संज्ञा शब्दों को जब प्रत्यय आदि जोड़कर विशेषण के रूप में प्रयुक्त किया जाता है तो उन्हें व्यक्तिवाचक विशेषण कहा जाता है।

व्यक्ति वाचक विशेषण मुख्यतः किसी शहर प्रान्त या देश के नाम से बनते हैं जैसे जयपुरी पगड़ी, जोधपुरी मिर्च, जापानी मशीन।

*. विभाव वाचक

कुछ विद्वान विशेषण का एक ओर भेद बतलाते हैं।

जैसे - प्रत्येक, हर एक।

उदाहरण -प्रत्येक बालक।

प्रविशेषण
विशेषण शब्दों की विशेषता प्रकट करने वाले शब्द प्रविशेषण कहलाते हैं।

जैसे - मैंने बहुत सुन्दर पक्षी देखा।

में सुन्दर विशेषण है जो पक्षी की विशेषता प्रकट कर रहा है तथा बहुत प्रविशेषण है जो विशेषण शब्द सुन्दर की विशेषता प्रकट कर रहा है।

उदाहरण
वह गहरी लाल साड़ी पहनती है।

में लाल विशेषण है। तथा गहरी प्रविशेषण है।

रामु बहुत सुन्दर नाचा।

में सुन्दर विशेषण नहीं है क्रियाविशेषण है जो नाचा क्रिया कि विशेषता बता रहा है तथा बहुत प्रविशेषण नहीं है, प्रक्रियाविशेषण है।

विशेषण की अवस्थाएं - तीन

1. मूलावस्था - सुन्दर(सुन्दर)

2. उत्तरावस्था - सुन्दरतर(उससे सुन्दर, यह तुलनात्मक अवस्था है।)

3. उत्तमावस्था - सुन्दरत्तम(सबसे सुन्दर)

उदाहरण
मोहन बहुत ज्यादा काला है वाक्य में कौनसी अवस्था है। -

मूलावस्था

क्योंकि यहां मोहन की तुलना किसी और से नहीं कि गई है और न ही मोहन को सबसे काला बताया गया है।

प्रयोग के अनुसार विशेषण के दो भेद होते हैं।

1. उद्देश्य विशेषण - विशेष्य से पहले वाला विशेषण को उद्देश्य विशेेषण कहा जाता है।

2. विधेय विशेषण - विशेष्य से बाद वाले विशेषण को विधेय विशेषण कहा जाता है।

तथ्य
विशेषण(उद्देश्य) - विशेष्य - विशेषण(विधेय)

उदाहरण - वह बालक सुन्दर है।

में वह उद्देश्य है जो बालक कि ओर संकेत कर रहा है अतः यह संकेत वाचक विशेषण है तथा सुन्दर विधेय है जो बालक का गुण बता रहा है।

उदाहरण
उद्देश्य विशेषण का प्रयोग किस विकल्प में है।

(क) गीता सुन्दर नाचती है।

(ख) गीता सुन्दर नाचना चाहती है।

(ग) गीता सुन्दर है।

(घ) गीता सुन्दर पक्षी लाती है।
उत्तर

पहले वाक्य में सुन्दर नाचती क्रिया के लिए आया है, दुसरे वाक्य में सुन्दर नाचना क्रिया के लिए आया है। अतः ये दोनों ही विशेषण नहीं है क्रिया विशेषण है। तीसरे वाक्य में सुन्दर विशेष्य गीता से बाद में आया है अतः यह विधेय है। चैथे वाक्य में सुन्दर पक्षी के लिए आया है और विशेष्य पक्षी से पहले आया है अतः यह उद्देश्य है।
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क्रिया

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क्रिया

वे शब्द, जिनके द्वारा किसी कार्य का करना या होना पाया जाता है, उन्हें क्रिया पद कहते हैं।


जैसे - खाना, पिना, हँसना, बोलना।

प्रकार
कर्म के आधार पर
कर्म के आधार पर क्रिया के मुख्यतः दो भेद हैं

अकर्मक क्रिया
सकर्मक क्रिया
अकर्मक क्रिया

वे क्रिया जिनको करने के लिए कर्म की आवश्यकता नहीं होती अकर्मक क्रिया कहलाती है।

जैसे - पक्षी उड़ता है।, बच्चा रोता है।, राधा नाचती है।, हवा चलती है।

सकर्मक क्रिया

वे क्रिया जिनको करने के लिए कर्म की आवश्यकता होती है सकर्मक क्रिया कहलाती है।

जैसे - लड़का पढ़ता है।, मोहन खाना बना रहा है।, बच्चे टि.वी. देख रहे हैं।

तथ्य
जिन वाक्यों में क्रिया करने के लिए कर्म की आवश्यकता होती है। जैसे खाना बनाने के लिए खाने की आवश्यकता है। पढ़ने के लिए किताब की आवयकता है।

जिन वाक्यों में क्या,किसको आदि से प्रश्न करने पर संतोष जनक उत्तर मिल जाये वे क्रियाऐं सकर्मक होती है, तथा उत्तर उस क्रिया का कर्म होता है।

एक कर्मक क्रिया

जब वाक्य में क्रिया के साथ एक कर्म प्रयुक्त हो तो उसे एक कर्मक क्रिया कहते हैं।

जैसे - महेश ने फल खरीदे।

द्विकर्मक क्रिया

कभी कभी वाक्य में दो कर्म होते हैं एक गौण कर्म व दुसरा मुख्य कर्म।

गौण कर्म - यह क्रिया से दुर होता है प्राणि वाचक होता है। तथा विभक्ति सहित होता है।

मुख्य कर्म - यह क्रिया के पास होता है, अप्राणी वाचक होता है, विभक्ति रहित होता है।

जैसे - शीना ने रिना को पुस्तक दी।

यहां रिना गौण कर्म है तथा पुस्तक मुख्य कर्म है।

प्रयोग तथा संरचना के आधार पर

इसके आधार पर भी क्रिया के निम्न भेद होते हैं-

सामान्य क्रिया

जब किसी वाक्य में एक ही क्रिया का प्रयोग हुआ हो, उसे सामान्य क्रिया कहते हैं।

जैसे - लड़का पढ़ता है।

पूर्वकालिक क्रिया

जब किसी वाक्य में दो क्रियाएँ प्रयुक्त हुई हों तथा उनमें से एक क्रिया दूसरी क्रिया से पहले सम्पन्न हुई हो तो पहले सम्पन्न होने वाली क्रिया पूर्व कालिक क्रिया कहलाती है।

जैसे - मैं खाना पका कर पढ़ने लगा। यहाँ पढ़ने से पूर्व खाना पकाने का कार्य हो गया अतः पकाना क्रिया पूर्वकालिक क्रिया कहलाएगी।

प्रेरणार्थक क्रिया

वे क्रियाएँ, जिन्हें कत्र्ता स्वयं न करके दूसरों को क्रिया करने के लिए प्रेरित करता है, उन क्रियाओं को प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं।

जैसे - दुष्यन्त हेमन्त से पत्र लिखवाता है। कविता सविता से पत्र पढ़वाती है।

सजातीय क्रिया

वे क्रियाएँ, जहाँ कर्म तथा क्रिया दोनों एक ही धातु से बनकर साथ प्रयुक्त होती हैं।

जैसे- हमने खाना खाया।

काल(काल के अनुसार)
क्रिया के होने का समय काल कहलाता है।

काल के मुख्यतः तिन भेद होते हैं।

भूत काल
वर्तमान काल
भविष्यत् काल
1. भूत काल
बीते समय का बोध कराने वाली क्रियाऐं भूतकालिक क्रियाऐं कहलाती है।

भूतकाल के मूख्यतः छः भेद है।

(क) सामान्य भूत काल

(ख) आसन्न भूत काल

(ग) पूर्ण भूत काल

(घ) संदिग्ध भूतकाल

(ड़) अपूर्ण भूतकाल

(च) हेतु-हेतुमद् भूतकाल

(क) सामान्य भूत काल

जब बीते समय का बोध कराने वाली क्रिया का केवल एक शब्द आये तो वहां सामान्य भूत काल होता है।

जैसे - गया, पढ़़ा,लिखी,देखे।

उदाहरण
मैनें राजस्थानज्ञान वेब साइट देखी।

(ख) आसन्न भूतकाल

सामान्य भूतकाल की क्रिया के अन्त में है, हैं, हो, हूँ आये तो आसन्न भूतकाल होगा।

जैसे - गया है, लिखी है, देखे हैं, गया हूँ।

उदाहरण
मैनें राजस्थान पर कहानी लिखी है।

(ग) पूर्ण भूतकाल

सामान्य भूतकाल की क्रिया के अन्त में था, थे, थी, आ जाये तो पूर्ण भूतकाल होगा।

जैसे - गया था, पढ़ी थी, लिखे थे।

उदाहरण
हमने बचपन में खेल खेले थे।

(घ) संदिग्ध भूतकाल

सामान्य भूतकाल के क्रिया के अन्त में होगा, होंगे, होगी आये तो संदिग्ध भूतकाल होता है।

जैसे - गया होगा, पढ़ी होगी, लिखे होंगे।

उदाहरण
तुमने किताब पढ़ी होगी।

(ड़) अपूर्ण भूतकाल

क्रिया के अन्त में रहा था, रही थी, रहे थे आये तो अपूर्ण भूतकाल होता है।

जैसे - जा रहा था, खा रही थी, हंस रहे थे।

उदाहरण
जब मैं वहां से गुजरा तो बच्चे खेल रहे थे।

(च) हेतु-हेतुमद् भूतकाल

बीते समय कि एक क्रिया का होना जब बीते समय की दुसरी क्रिया पर आश्रित हो तो वहां हेतु-हेतुमद् भूतकाल होता है।

उदाहरण
बरसात होती तो फसलें पक जाती।

वाक्य में फसलें पकना बरसात होने पर आश्रित थी अतः न बरसात हुई और न ही फसलें पकी।

एक महीना और पढ़ता तो चयन हो जाता।

2. वर्तमान काल
पांच भेद

(क) सामान्य वर्तमान काल

क्रिया के अन्त में ता है, ती है, ते हैं आये तो सामान्य वर्तमान काल होगा।

जैसे - पढ़ता है, लिखती है, जाते हैं।

उदाहरण
मोहन पांचवी कक्षा में पढ़ता है।

(ख) अपूर्ण वर्तमान काल

क्रिया के अन्त में रहा है, रही है, रहे हैं आये।

जैसे - पढ़ रहा है, लिख रही है, जा रहे हैं।

उदाहरण
वह गाना लिख रहा है।

(ग) संदिग्ध वर्तमान काल

वर्तमान काल की क्रिया के अन्त में होगा, होंगे, होगी आए तो संदिग्ध वर्तमान काल होता है।

जैसे - पढ़ रहा होगा, लिख रही होगी, देख रहे होंगे।

उदाहरण
राम किताब लिख रहा होगा।

(घ) संभावय वर्तमान काल

वर्तमान काल की क्रिया से पहले शायद, संभवत,लगता है, हो सकता है आदि संभावनावाची शब्द आ जाये तो संभावय वर्तमान काल होता है।

उदाहरण
लगता है कोई हमारी बातें सुन रहा है।, शायद कोई बाहर खड़ा है।

(ड़)आज्ञार्थ वर्तमान काल

आज्ञार्थक क्रियाओं का प्रयोग मुख्यतः आज्ञार्थ वर्तमान काल में हि होता है।

जैसे - पढ़,पढ़ो, पढे, पढ़ें, पढुं।

उदाहरण
तू लिख।, तुम हंसो।, वह गांव जाए।, वे यहां खेले।, मैं गांव से कब आऊँ ?

3. भविष्यत काल
आने वाले समय का बोध कराने वाली क्रियाऐं भविष्यत् कालिक क्रियाएंे कहलाती है।

मुख्यतः तीन भेद

(क) सामान्य भविष्यत् काल

(ख) आज्ञार्थ भविष्यत् काल

(ग) संभाव्य भविष्यत् काल

(क) सामान्य भविष्यत् काल

जब क्रिया के अन्त में एगा, एगी, एंगे आये तो सामान्य भविष्यत काल होता है।

जैसे - वह पढ़ेगा, गीता लिखेगी, वे सुनेंगे।

उदाहरण
कल वह राजस्थान के बारे में पढ़ेगा।

(ख) आज्ञार्थ भविष्यत् काल

क्रिया के अन्त में इएगा आये तो आज्ञार्थ भविष्यत् काल होगा।

जैसे - पढिएगा।

उदाहरण
इस बात पर विचार करियेगा।

(ग) संभाव्य भविष्यत काल

क्रिया के अन्त में ए, एं, ओ, ऊं आये तथा क्रिया से पुर्व संभावनावाची शब्द शायद, संभवत, लगता है, हो सकता है आ जाये तो संभाव्य भविष्यत काल होगा।

उदाहरण
संभवत कल पिताजी आये। हो सकता है मोहन बाजार जाये।, शायद में गांव जाऊँ।

(*) हेतु-हेतुमद् भविष्यत काल

जब भविष्यत् काल की एक क्रिया का होना भविष्यत् काल की दुसरी क्रिया पर आश्रित हो तो हेतु-हेतुमद् भविष्यत् काल होता है।

उदाहरण
जो परिश्रम करेगा वह सफल होगा।, जैसा कार्य करेंगे वैसा फल मिलेगा।

तथ्य
हेतु-हेतुमद भविष्यत काल को कुछ हि जानकार मानते है लेकिन मुख्यतः भविष्यत काल के केवल तीन भेद होते हैं।

उदाहरण
1. राम ने पत्र पढ़ लिया होगा - संदिग्ध भूतकाल

2. राम पत्र पढ़ रहा होगा - संदिग्ध वर्तमान

3. राम गांव से शहर आया है - आसन्न भूतकाल
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सर्वनाम

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सर्वनाम

संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द सर्वनाम कहलाते हैं।



सर्वनाम के मुख्यतः छः भेद हैं -

1. पुरूष वाचक सर्वनाम - 3 भेद

(i) अन्य पुरूष वाचक - वह, यह, आप
(ii) मध्य पुरूष वाचक - तुम, आप
(iii) उत्तम पुरूष वाचक - मैं
2. निश्चय वाचक सर्वनाम - वह, यह

3. संबंध वाचक सर्वनाम - जो

4. प्रश्न वाचक सर्वनाम - कौन

5. अनिश्चय वाचक सर्वनाम - कोई, किसी, कुछ

6. निज वाचक सर्वनाम - स्वंय, अपना, अपने, खुद, अपनी, आप।

आप शब्द का मध्यम पुरूष व अन्य पुरूष में अन्तर

आप शब्द का प्रयोग जिससे बात कर रहे हैं उसके लिए हो तो मध्यम पुरूष वाचक सर्वनाम माना जाता है। तथा आप शब्द का प्रयोग जो सामने या इस दुनिया में भी नहीं है उसके वर्णन के लिए किया जाये तो अन्य पुरूष वाचक सर्वनाम माना जायेगा।

जैसे - आप गांव से कब आये - मध्यमपुरूष

भगत सिंह सच्चे योद्धा थे, आप ने देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसी चढ़ गये - अन्य पुरूष

वह, यह शब्दों का अन्य पुरूष वाचक व निश्चय वाचक में अन्तर

यह, वह शब्दों का प्रयोग जिसके लिए हो वह शब्द वाक्य में आ जाये तो निश्चय वाचक सर्वनाम तथा यह, वह जिसके लिए हो वह वाक्य में नहीं आये तो अन्य पुरूष वाचक सर्वनाम होगा।

1. वह गाय ही चराता है - अन्य पुरूष वाचक

2. शायद वह गाय चर रही है -निश्चयवाचक

उस, इस, उन, इन के तुरन्त बाद कारक चिन्ह हो तो इन्हें अन्य पुरूष मानें तथा तुरन्त बाद कारक चिन्ह न हो तो इन्हें निश्चय वाचक सर्वनाम मानें।

1. इसको चारा खिलाओ - अन्य पुरूषवाचक

2. इस गाय को चारा खिलाओ - निश्चयवाचक

1. पुरुषवाचक सर्वनाम

जिन सर्वनामों का प्रयोग बोलने वाले, सुननेवाले या अन्य किसी व्यक्ति के स्थान पर किया जाता है, उन्हें पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं।

पुरुषवाचक सर्वनाम तीन प्रकार के होते हैं -

(i) उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम: वे सर्वनाम शब्द जिनका प्रयोग बोलने वाला व्यक्ति अपने लिए करता है।

जैसे - मैं, हम, मेरा, हमारा।

(ii) मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम: वे सर्वनाम शब्द, जो सुनने वाले के लिए प्रयुक्त किये जाते हैं।

जैसे - तू, तुझे, तेरा, आप, आपको।

(iii) अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम: वे सर्वनाम, जिनका प्रयोग बोलने तथा सुनने वाले व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के लिए प्रयुक्त करते हैं।

जैसे - वह, उन्हें, उसे।

2. निश्चयवाचक सर्वनाम

वे सर्वनाम, जो किसी निश्चित व्यक्ति या वस्तु का बोध कराते हैं, उन्हें निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं।

जैसे-यह, वह, ये।

उस बालक ने थप्पड़ मारा।

उस शब्द बालक का बोध करवा रहा है अतः उस शब्द निश्चयवाचक सर्वनाम है।

3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम

वे सर्वनाम शब्द, जिनसे किसी निश्चित वस्तु या व्यक्ति का बोध नहीं होता बल्कि अनिश्चय की स्थिति बनी रहती है, उन्हें अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं।

जैसे- कुछ, किसी, कोई।

कुछ लोग जा रहे हंै।

कुछ शब्द अनिश्चयवाचक सर्वनाम हैं।

4. प्रश्नवाचक सर्वनाम

वे सर्वनाम, जो प्रश्न का बोध कराते हैं या वाक्य को प्रश्नवाचक बना देते हैं, उन्हें प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं।

जैसे- कौन, क्या, किसने।

किसने झगड़ा किया ?

किसने शब्द प्रश्नवाचक सर्वनाम हैं।

5. सम्बन्धवाचक सर्वनाम

वे सर्वनाम, जो दो पृथक्-पृथक् बातों के स्पष्ट सम्बन्ध को व्यक्त करते हैं, उन्हें सम्बन्धवाचक सर्वनाम कहते हैं।

जैसे-जैसा-वैसा, जिसकी-उसकी, जितना-उतना।

जैसा कर्म करोगे वैसा फल मिलेगा।

6. निजवाचक सर्वनाम

वे सर्वनाम, जिन्हें बोलनेवाला कत्र्ता स्वयं अपने लिए प्रयुक्त करता है, उन्हें निजवाचक सर्वनाम कहते हैं।

जैसे - अपनी, अपना, स्वयं, ।

मैं मेरे कपड़े खुद धोता हुं।

सर्वनाम के विकारी रूप

सर्वनाम शब्दों में लिंग के कारण कोई परिवर्तन नहीं होता। सर्वनाम शब्दों में वचन तथा कारक के कारण परिवर्तन होता है।

सर्वनाम शब्दों का संम्बोधन कारक नहीं होता।

सर्वनाम - वह (अ.पु./नि.वा.)

कारक    एक वचन    बहुवचन
कर्ता    वह,उसने    वे, उन्होंने
कर्म    उसे, उसको    उन्हें, उनको
करण    उससे,उसके द्वारा    उनसे,उनके द्वारा
सम्प्रादान    उसके लिए    उनके लिए
अपादान    उससे    उनसे( अलग होने के भाव में)
संबंध    उसका, उसके उसकी    उनका, उनके, उनकी
अधिकरण    उसमें, उस पर    उनमें, उन पर
सर्वनाम - यह (अ.पु./नि.वा.)

वह का यह ये का वे उ की जगह इ कर देंगे

कारक    एक वचन    बहुवचन
कर्ता    यह,इसने    ये, इन्होंने
कर्म    इसे, इसको    इन्हें, इनको
करण    इससे,इसके द्वारा    इनसे,उनके द्वारा
सम्प्रादान    इसके लिए    इनके लिए
अपादान    इससे    इनसे( अलग होने के भाव में)
संबंध    इसका, इसके इसकी    इनका, इनके, इनकी
अधिकरण    इसमें, इस पर    इनमें, इन पर
सर्वनाम - जो (संबंधवाचक)

जो एक वचन व बहुवचन दोनों होगा तथा इ की जगह जि करना है

कारक    एक वचन    बहुवचन
कर्ता    जो    जो
कर्म    जिसे, जिसको    जिन्हें, जिनको
करण    जिससे,जिसके द्वारा    जिनसे,जिनके द्वारा
सम्प्रादान    जिसके लिए    जिनके लिए
अपादान    जिससे    जिनसे( अलग होने के भाव में)
संबंध    जिसका, जिसके इसकी    जिनका, जिनके, जिनकी
अधिकरण    जिसमें, जिस पर    जिनमें, इन पर
सर्वनाम - कौन (प्रश्नवाचक)

कौन का एकवचन व बहुवचन कौन होगा तथा जि की जगह कि कर देंगे

कारक    एक वचन    बहुवचन
कर्ता    कौन    कौन
कर्म    किसे, किसको    किन्हें, किनको
करण    किससे,किसके द्वारा    किनसे,किनके द्वारा
सम्प्रादान    किसके लिए    किनके लिए
अपादान    किससे    किनसे( अलग होने के भाव में)
संबंध    किसका, किसके किसकी    किनका, किनके, किनकी
अधिकरण    किसमें, किस पर    किनमें, किन पर
सर्वनाम - तुम(मध्यम पुरूष)

कारक    एक वचन    बहुवचन
कर्ता    तू तूने    तुम, तुमने
कर्म    तुझे, तुझको    तुम्हें, तुमको
करण    तुझसे, तेरे द्वारा    तुमसे, तुम्हारे द्वारा
सम्प्रदान    तेरे लिए    तुम्हारे लिए
अपादान    तुझसे    तुमसे( अलग होने के भाव में)
संबंध    तेरा, तेरे, तेरी    तुम्हारा, तुम्हारे, तुम्हारी
अधिकरण    तुझमें, तुझ पर    तुममें, तुम पर
सर्वनाम - मैं(उत्तम पुरूष)

कारक    एक वचन    बहुवचन
कर्ता    मैं, मैंने    हम, हमने
कर्म    मुझे, मुझको    हमें, हमको
करण    मुझसे, मेरे द्वारा    हमसे, हमारे द्वारा
सम्प्रदान    मेरे लिए    हमारे लिए
अपादान    मुझसे    हमसे( अलग होने के भाव में)
संबंध    मेरा, मेरे, मेरी    हमारा, हमारे, हमारी
अधिकरण    मुझमें, मुझ पर    हममें, हम पर
सर्वनाम - आप(मध्यम पुरूष)

आदर सुुचक शब्द केवल बहुवचन होते हैं

कारक    एक वचन    बहुवचन
कर्ता    -    आप, आपने
कर्म    -    आपको
करण    -    आपसे, आपके द्वारा
सम्प्रदान    -    आपके लिए
अपादान    -    आपसे(अलग होने के भाव)
संबंध    -    आपका, आपके, आपकी
अधिकरण    -    आपमें, आप पर
उदाहरण
निम्न में से पुर्णतः बहुवचन सर्वनाम है -

1. तेरे 2. जो 3. आप 4. कौन

उत्तर

आदर सुचक शब्दों का प्रयोग हमेशा बहुवचन में किया जाता है क्योंकि जिसका हम आदर करते हैं वह एक होते हुए भी बहुत ज्यादा होता है।

उदाहरण
निम्न में से किस विकल्प में संम्बन्ध वाचक सर्वनाम का प्रयोग हुआ है -

1. इसमें 2. उसका 3. जिन्हें 4. हमको

उत्तर

सम्बन्ध वाचक सर्वनाम वह होगा जो ज से शुरू होगा।

उसका - सम्बन्ध कारक है अन्य पुरूष वाचक।

उदाहरण
किसी विकल्प में सभी पुरूष वाचक सर्वनाम है।

1. वह, उस , तुम, मैं

2. आप, तुम, मैं, वह

3. इस, उस, इसका, उसका

4. जो, जिसने, जिन्हें, जिसको

उत्तर

उदाहरण
वह गााय 10 किलो दुध देती है। रेखांकित में सर्वनाम है -

1. अन्यपुरूष वाचक

2. निश्चय वाचक

3. संबंध वाचक

4. मध्यपुरूष वाचक

उत्तर

वह शब्द जिसके लिए प्रयोग हो वह दिख रहा हो तो निश्चय वाचक।

उदाहरण
वह गाय चराता है -

1. अन्यपुरूष वाचक

2. निश्चय वाचक

3. संबंध वाचक

4. मध्यपुरूष वाचक

उत्तर

यहां वह का प्रयोग गाय के लिए नहीं हुआ है।

उदाहरण
निम्न में से कर्म कारक बहुवचन सर्वनाम है -

1. इससे 2. उसको 3. इन्हें 4. उनका

उत्तर

कि/इ/उ/नि के बाद स हो तो हमेशा एक वचन

इ/उ/कि/जि के बाद न तो हमेशा बहुवचन
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संज्ञा

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संज्ञा

किसी वस्तु, प्राणी, स्थान, भाषा, अवस्था, गुण या दशा के नाम को संज्ञा कहते हैं। संज्ञा शब्द का प्रयोग किसी वस्तु के लिए नहीं, अपितु वस्तु के नाम के लिए होता है।



जैसे - हिमालय,राम,हनुमानगढ़,पुस्तक,बीमार,गरीबी,गाय आदि।

संज्ञा के मुख्य रूप से तीन भेद होते है-

व्यक्तिवाचक संज्ञा
जातिवाचक संज्ञा
भाववाचक संज्ञा
1. व्यक्तिवाचक संज्ञा

किसी व्यक्ति विशेष के नाम, स्थान विशेष के नाम और किसी वस्तु विशेष के नाम को व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं। जिन शब्दों का प्रयोग किसी एक के लिए हो उन्हें व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं।

जैसे - मोहन(व्यक्ति विशेष),गंगानगर(स्थान विशेष),सरसदुध(वस्तु विशेष),बीकानेर,भारत।

तथ्य
जो इस संसार में केवल एक हो उसके लिए प्रयुक्त नाम व्यक्ति वाचक संज्ञा होगा।

जैसे - पृथ्वी, आकाश, सुर्य।

कुछ जातिवाचक संज्ञाएं प्रसंग के अनुसार व्यक्ति वाचक संज्ञा मानी जाती है।

जैसे - बोस ने कहा था तुम मुझे खुन दो मैं तुम्हें आजादी दुंगा।

यहां बोस जातिवाचक संज्ञा है लेकिन यहां पर बोस का अर्थ सुभाष चन्द्र बोस से लिया गया है इसलिए यह व्यक्ति वाचक संज्ञा है।

यंत्र के नाम निर्माता कंम्पनी के साथ आये तो व्यक्तिवाचक संज्ञा माने जाते हैं।

जैसे - बजाज पंखा।

जिस वस्तु, व्यक्ति या स्थान विशेष का नाम उसके जन्म के पश्चात रखा जाता है वह व्यक्तिवाचक होता है

जैसे - जब किसी बच्चे का जन्म होता है तो उसका उस समय कोई नाम नहीं होता है जन्म के पश्चात उसका नाम राम, रहिम, मोहन रखा जाता है जो कि व्यक्ति वाचक है।

उदाहरण
वह आदमी गुजरात से आया रेखांकित में संज्ञा है-

1. व्यक्ति वाचक 2. जाति वाचक 3. स्थान वाचक 4. भाववाचक

उत्तर

क्योंकि गुजरात का नाम गुजरात के बनने के बाद रखा गया था।

2. जातिवाचक संज्ञा

जिस संज्ञा से किसी प्राणी,वस्तु अथवा स्थान के वर्ग या उसकी जाति का ज्ञान हो, उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं।

जिन शब्दों का प्रयोग समुह के लिए किया जाता है उन्हें जातिवाचक संज्ञा कहते है।

जैसे - गधा,पहाड़,दुध, कुर्सी, मेज, गाय, गुलाब, गेंदा।

तथ्य
कुछ व्यक्ति वाचक संज्ञाएं जो प्रसिद्ध एवं ऐतिहासिक नाम है। प्रसंग के अनुसार जाति वाचक संज्ञा माने जाते हैं।

जैसे - भारत में आज भी श्रवण कुमार पैदा होते हैं।

जिस वस्तु, व्यक्ति या स्थान का नाम उसके जन्म से पहले यानि जन्मजात हो उसे जातिवाचक संज्ञा कहते है।

जैसे जब कोई बच्चा पैदा होता है तो उसे बच्चा ही कहते है यह नाम उसका जन्मजात होता है जो हर एक बच्चे के लिए जन्मजात होता है इसलिए बच्चा एक जाति वाचक संज्ञा है।

उदाहरण
फुलों में गुलाब श्रेष्ट होता है रेखांकित में संज्ञा है -

1.जातिवाचक 2.व्यक्तिवाचक 3. भाववाचक 4. स्थान वाचक

उत्तर

क्योंकि गुलाब एक फुलों कि जाति है।

उदाहरण
आजकल हर शहर में रावण पैदा हो रहे हैं में रावण में संज्ञा है -

1.व्यक्तिवाचक 2. जातिवाचक 3. गुणवाचक 4. भाववाचक

उत्तर

क्योंकि यहां रावण का प्रयोग किसी विशेष व्यक्ति के लिए न होकर बूरे व्यक्तियों के समुह के लिए हुआ है।

3. भाववाचक संज्ञा

किसी भाव, गुण, दशा अथवा अवस्था के नाम को भाववाचक संज्ञा कहते हैं।

जैसे - अमीरी, बुढ़ापा, दुख, अच्छा, प्रसन्नता, क्रोध, सौन्दर्य।

तथ्य
भाववाचक संज्ञा किसी भी वस्तु, व्यक्ति या स्थान का एक गुण नहीं है बल्कि एक अधिक गुणों का समावेश है।

जैसे गरीबी के लिए हम यह नहीं कह सकते की उसके पास गाड़ी नहीं है तो वो गरीब है या उसके पास मकान नहीं तो वो गरीब है जब कई सारे गुण मिल जाते हैं तो भाव वाचक संज्ञा बनती है जैसे गरीबी के लिए उसके पास मकान न हो, खाने के लिए पैसे न हो पहनने के लिए कपड़े न हो आदि। हम किसी भी एक गुण को देख कर उसकी गरीबी या अमीरी या बुढ़ापे का अन्दाजा नहीं लगा सकते अतः भाववाचक संज्ञा से जिसका बोध हो उन्हें महसुस किया जा सकता है देखा नहीं जा सकता।

भाव वाचक संज्ञाएं सभी प्रकार के शब्दों में प्रत्यय जोड़ कर बन जाती है।

1. व्यक्ति वाचक संज्ञा से भाववाचक संज्ञा

राम + त्व - रामत्व

2. जातिवाचक संज्ञा से भाव वाचक संज्ञा

बुढ़ा + आपा - बुढ़ापा

3. सर्वनाम से भाववाचक संज्ञा

अपना + पन - अपनापन

मम + ता - ममता

अपना + त्व - अपनत्व

4. क्रिया से बनी भाववाचक संज्ञा

घबराना - घबराहट

5. विशेषण से बनी भाववाचक संज्ञा

मिठा + आस - मिठास

सुन्दर + ता - सुन्दरता

उदाहरण
सुखी में संज्ञा है -

1.जातिवाचक 2. व्यक्तिवाचक 3. भाववाचक 4. संबधवाचक

उत्तर

क्योंकि हम किसी व्यक्ति को देख कर यह कह सकते है कि यह सुखी है और सुखी व्यक्तियों का समुह होता है अतः यह एक जातिवाचक संज्ञा है।

तथ्य
कुछ विद्वान इन भेदों के अलावा दो भेद और मानते है - समुदायवाचक व द्रव्यवाचक। परन्तु ये दोनों ही जातिवाचक संज्ञा के अन्तर्गत आते हैं।

समुदायवाचक/समुह वाचक - जनता, भीड़, सभा, गोस्टी, सेना, कक्षा, पंचायत।

द्रव्यवाचक - पानी,दुध, चांदी, सोना, गेहुं, मिट्टी, बजरी।

गणनीय संज्ञा व अगणनीय संज्ञा

गणनीय संज्ञा - ऐसी वस्तुएं जिनकी गणना की जा सके को गणनीय संज्ञा कहते है।

जैसे - पुस्तक,लड़का,कमरा।

अगणनीय संज्ञा - ऐसी वस्तुएं जिनकी गणना नहीं की जा सके उन्हें अगणनीय संज्ञा कहते है।

जैसे - पानी,दुध,सोना,प्रेम।
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तत्सम, तद्भव, देशज एवं विदेशी शब्द

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तत्सम, तद्भव, देशज एवं विदेशी शब्द
उत्पति(स्त्रोत) के आधार पर शब्द - भेद चार                                   
1. तत्सम - पिता

2. तद्भव - पुत्र

3. देशज - लावारिस

4 विदेशी

* संकर शब्द





यदि हम तत्सम को पिता माने तो तद्भव को पुत्र मान सकते हैं क्योंकि तत्सम, तद्भव के गुण रूप आदि एक दुसरे से पिता पुत्र कि तरह मिलते है। कुछ अपवाद भी होते है। लेकिन स्वभाविक रूप से यह माना जा सकता है कि दोनों में कुछ ना कुछ एक समान होगा।

उदाहरण
निम्न में से तत्सम तद्भव का सही जोड़ा नहीं है।

उष्ट्र-ऊट
श्रृंगार-सिंगार
चक्षु-आंख
दधि-दही
उत्तर SHOW ANSWER

यहां आप आसानी से देख सकते हैं कि केवल चक्षु-आंख के जोड़े में कोई समानता नहीं है शेष तीनों जोड़े एक दुसरे से मेल रखते है।

इसलिए सही उत्तर है चक्षु-आंख

यहां चक्षु का तद्भव है- चख और आंख का तत्समक है- अक्षि।

तत्सम शब्द
संस्कृत भाषा के शब्द जिनका हिन्दी भाषा में प्रयोग करने पर रूप परिवर्तित नहीं होता वे तत्सम शब्द कहलाते हैं।

तथ्य
जैसे संस्कृत में बिल्कुल वैसे ही हिन्दी में होंगे।

संधी के प्रचलित नियमों में + से पहले व + के बाद आने वाले शब्द तत्सम कहलाते हैं।

संस्कृत के उपसगोें से बने शब्द सत्सम होते हैं।

विसर्ग(:) तथा अनुसार( ं ) मुख्य रूप से तत्सम शब्दों में पाया जाता है।

जैसे - उष्ट्र, महिष, चक्रवात, वातकि, भुशुण्डी, चन्द्र, श्लाका, शकट, हरिद्र।

तद्भव शब्द
संस्कृत भाषा के शब्द जिनका हिन्दी भाषा में प्रयोग करने पर रूप बदल जाता है उन्हें तद्भव शब्द कहते हैं।

जैसे - ऊँट, भैंस, चकवा, बैंगन, बन्दुक, चाँद, सलाई, छकड़ा, हल्दी।

तथ्य
1. संस्कृत वाले शब्दों से बनावट में मिलते-जुलते सरल शब्द तद्भव होते हैं।

2. हिन्दी के उपसर्गों से बने शब्द तद्भव होते है।

3. हिन्दी कि क्रियाऐं पढ़ना, लिखना, खाना आदि तद्भव होते हैं।

4. अंकों को शब्दों में लिखने पर एक को छोड़ कर सभी तद्भव होते हैं।

5. अर्धअनुस्वार( ँ) अर्थात चरम बिन्दु मुख्य रूप से तद्भव शब्दों में पाया जाता है।

जैसे - चाँद, हँसना।

अर्द्धतत्सम शब्द

संस्कृत से वर्तमान स्थाई तद्भव रूप तक पहुंचने के मध्य संस्कृत के टुटे फुटे स्वरूप का जो प्रयोग किया जाता था उसे अर्द्ध तत्सम कहा जाता है।

जैसे -अगिन या अगि

यह अग्नि(तत्सम) व आग(तद्भव) के मध्य का स्वरूप है।

देशज शब्द
वे शब्द जिनकी उत्पत्ति के स्त्रोत अज्ञात होते हैं। उन्हें देशज शब्द कहते हैं।

संस्कृतेतर(संस्कृत से अन्य) भारतीय भाषाओं के शब्द देशज होते हैं।

क्षेत्रीय बोलियों के शब्द तथा मनघड़ंत शब्द भी देशज होते हैं।

ध्वनि आदि के अनुकरण पर रचित क्रियाएं जिन्हें अनुक्रणात्मक क्रियाएं भी कहते हैं देशज कहलाती हैं।

जैसे - लड़का, खिड़की, लोटा, ढ़म-ढ़म, छपाक-छपाक, भौंकना।

विदेशी शब्द
अरबी, फारसी, अंग्रजी या अन्य किसी भी दुसरे देश की भाषा के शब्द जिनका हिन्दी भाषा में प्रयोग कर लिया जाता है उन्हें विदेशी शब्द कहते हैं।

जैसे -इरादा, इशारा, हलवाई, दीदार, चश्मा, डॉक्टर, हॉस्पीटल, इलाज, बम।

संकर शब्द

किन्ही दो भाषाओं के शब्दों को मिलाकर जिन नये शब्दों कि रचना हुई है।उन्हें संकर शब्द कहा जाता है।

जैसे - डबलरोटी(अंग्रेजी + हिन्दी), नेकचलन(फारसी + हिन्दी), टिकटघर(अंग्रेजी + हिन्दी)।

तत्सम - तद्भव List
परिवर्त के आधार पर शब्द
दो भेद

विकारी
अविकारी(अव्यय)
विकारी

वे शब्द जिनमें लिंग वचन कारक आदि के कारण परिवर्तन होता उन्हें विकारी शब्द कहते हैं

इसके चार भेद हैं-

1. संज्ञा

2. सर्वनाम

3. विशेषण

4. क्रिया

अविकारी

वे शब्द जिनमें लिंग वचन कारक आदि के कारण कोई परिवर्तन नहीं होता उन्हें अव्यय या अविकारी शब्द कहते हैं इसके भी मुख्य रूप से चार भेद हैं-

1. क्रिया विशेषण

2. संबंध बोधक

3. समुच्चय बोधक

4. विस्मयादि बोधक

* निपात                                   
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भाषा

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भाषा

भाषा वह साधन है जिसके माध्यम से हम अपने विचारों को व्यक्त करते हैं। भाषा शब्द संस्कृत के भाष् से व्युत्पन्न है। भाष् धातु से अर्थ ध्वनित होता है-प्रकट करना।

तथ्य- ध्वनि भाषा - शरीर की सबसे छोटी इकाई है, ध्वनि भाषा की लघुत्तम और वाक्य भाषा की पुर्ण इकाई है।




व्याकरण- जो विद्या भाषा का विश्लेषण करती है व्याकरण कहलाती है।
वर्ण विचार
  1. वर्ण
  2. शब्द
  3. वाक्य
हिन्दी में 44 वर्ण है जिन्हें दो भागों में बांटा जा सकता है- स्वर और व्यंजन
  1. स्वर(11)

  2. व्यंजन(33)

1. स्वर

ऐसी ध्वनियां जिनका उच्चारण करने में अन्य किसी ध्वनि की सहायता की आवश्यकता नहीं होती, उन्हें स्वर कहते हैं।
स्वर ग्यारह होते हैं-
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, ऋ
दो भागों में बांटा गया है
  1. हृस्व(4)
  2. दीर्घ(7)
हृस्व स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में उपेक्षाकृत कम समय लगता है -
जैसे- अ, इ, उ, ऋ
दीर्घ स्वर - जिन स्वरों को बोलने में अधिक समय लगता है-
जैसे- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ

2. व्यंजन

जो ध्वनियां स्वरों की सहायता से बोली जाती है उन्हें व्यंजन कहते है।
व्यंजन 33 होते हैं-
इन्हें 5 वर्गो तथा स्पर्श, अन्तस्थ, ऊष्म व्यंजनों में बांटा जा सकता है।

स्पर्श - 25

क वर्ग - क ख ग घ ड़
च वर्ग - च छ ज झ ञ
ट वर्ग - ट ठ ड ढ ण
त वर्ग - त थ द ध न
प वर्ग - प फ ब भ म

अन्तस्थ - 4

य र ल व

ऊष्म - 4

श् ष् स् ह्
संयुक्ताक्षर - इसके अतिरिक्त हिन्दी में तीन संयुक्त व्यंजन भी होते हैं-
क्ष - क् + ष्
त्र - त् + र्
ज्ञ - ज् + ञ´
हिन्दी वर्ण माला में 11 स्वर और 33 व्यंजन अर्थात कुल 44 वर्ण है तथा तीन संयुक्ताक्षर है।

वर्णो के उच्चारण स्थान

भाषा को शुद्ध रूप से बोलने और समझने के लिए वर्णो के उच्चारण स्थानों को जानना आवश्यक है -
वर्णउच्चारण स्थानवर्ण ध्वनि का नाम
1. अ, आ, क वर्गकंठ कोमल तालुकंठ्य और विसर्ग
2. इ, ई, च वर्ग, य, शतालुतालव्य
3. ऋ, ट वर्ग, र्, षमूद्र्धामूर्द्धन्य
4. लृ, त वर्ग, ल, सदन्तदन्त्य
5. उ, ऊ, प वर्गओष्ठओष्ठ्य
6. अं, ङ, ञ, ण, न्, म्नासिकानासिक्य
7. ए ऐकंठ तालुकंठ - तालव्य
8. ओ, औकंठ ओष्ठकठोष्ठ्य
9. वदन्त ओष्ठदन्तोष्ठ्य
10. हस्वर यन्त्रअलिजिह्वा
अनुनासिक ध्वनियों के उच्चारण में वर्ण विशेष का उच्चारण स्थान के साथ-साथ नासिका का भी योग रहता है।
अतः अनुनासिक वर्णों का उच्चारण स्थान उस वर्ग का उच्चारण स्थान और नासिका होगा।
कंठ और नासिका दोनो का उपयोग होता है तो उच्चारण स्थान कंठ नासिका होता है
जैसे- अं
उच्चारण की दृष्टि से व्यंजनों का आठ भागों में बांटा जा सकता है।

1. स्पर्शी:

जिन व्यंजनों के उच्चारण में फेफड़ों से छोड़ी जाने वाली हवा वाग्यंत्र के किसी अवयव का स्पर्श करती है और फिर बाहर निकलती है। निम्नलिखित व्यंजन स्पर्शी हैं:
क् ख् ग् घ् ; ट् ठ् ड् ढ्
त् थ् द् ध् ; प् फ् ब् भ्

2. संघर्षी:

जिन व्यंजनों के उच्चारण में दो उच्चारण अवयव इतनी निकटता पर आ जाते हैं कि बीच का मार्ग छोटा हो जाता है तब वायु उनसे घर्षण करती हुई निकलती है। ऐसे संघर्षी व्यंजन हैं-श्, ष्, स्, ह्, ख्, ज्, फ्

3. स्पर्श संघर्षी:

जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्पर्श का समय अपेक्षाकृत अधिक होता है और उच्चारण के बाद वाला भाग संघर्षी हो जाता है, वे स्पर्श संघर्षी कहलाते हैं - च्, छ्,ज्, झ्।

4. नासिक्य:

जिनके उच्चारण में हवा का प्रमुख अंश नाक से निकलता है ङ्, ञ, ण्,न, म्।

5. पाशर््िवक:

जिनके उच्चारण में जिह्वा का अगला भाग मसूड़े को छूता है और वायु पाश्र्व आस-पास से निकल जाती है, वे पाशर््िवक हैं- जैसे - ल् ।

6. प्रकम्पित:

जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा को दो तीन बार कंपन करना पड़ता है, वे प्रकंपित कहलाते हैं। जैसे-र

7. उत्क्षिप्त:

जिनके उच्चारण में जिह्वा की नोक झटके से नीचे गिरती है तो वह उत्क्षिप्त (फेंका हुआ) ध्वनि कहलाती है। ड्, ढ् उत्क्षिप्त ध्वनियाँ हैं।

8. संघर्ष हीन:

जिन ध्वनियों के उच्चारण में हवा बिना किसी संघर्ष के बाहर निकल जाती है वे संघर्षहीन ध्वनियाँ कहलाती हैं। जैसे-य, व। इनके उच्चारण में स्वरों से मिलता जुलता प्रयत्न करना पड़ता है, इसलिए इन्हें अर्धस्वर भी कहते हैं।
स्थिति और कम्पन्न के आधार पर वर्णो को दो भागों में बांटा जा सकता है
  1. घोष
  2. अघोष

घोष

घोष का अर्थ है- गूंज
जिन वर्णो का उच्चारण करते समय गूंज होती है उन्हें घोष वर्ण कहते है।व्यंजन वर्गो के तीसरे चैथे और पांचवें व्यंजन(ग,घ,ड़,ज,झ, ञ,ड,ढ,ण,द,ध,न,ब,भ,म) तथा य,र,ल,व,ह घोष है। इसके अतिरिक्त सभी स्वर भी घोष वर्ण होते हैं।
इनकी संख्या 30 है।

अघोष

इन वर्गो के उच्चारण में प्राणवायु में कम्पन्न नहीं होती उन्हें अघोष वर्ण कहते हैं। व्यंजन वर्गो के पहले और दुसरे व्यंजन(क,ख,च,छ,ट,ठ,त,थ,प,फ) तथा श् ष् स् आदि सभी वर्ण अघोष है इनकी संख्या तेरह है।
श्वास वायु के आधार पर वर्णों के दो भेद है-
  1. अल्पप्राण
  2. महाप्राण

अल्पप्राण

जिन व्यंजनों के उच्चारण में सांस की मात्रा कम लगानी पड़ती है, उन्हें अल्पप्राण कहते है।वर्गो का पहला,तीसरा, और पांचवां वर्ण(क ग ड़ च ज ञ ट ड ण त द न प ब म) तथा य र ल व औ सभी स्वर अल्प प्राण है।

महाप्राण

जिन वर्णो के उच्चारण में सांस की मात्रा अधिक लगानी पड़ती है उन्हें महाप्राण व्यंजन कहते हैं। प्रत्येक वर्ग का दुसरा और चैथा वर्ण(ख,घ,छ,झ,ठ,ढ,थ,ध,फ,भ) तथा श,ष,स,ह महाप्राण है।

अनुनासिक

अनुनासिक ध्वनियों के उच्चारण में नाक का सहयोग रहता है।
जैसे - अं, आं, ईं,ऊं ।
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